पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/११९

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गोपाल कृष्ण गोखले +X:*:X:+: . 'यया चित्वं सथा बाची यथा वाचस्तया क्रिया । चित्ते वाच क्रियायां च साधूनामेककपिता ॥ * Mतमान समय में, कितने ही भारत सन्तान जननी जन्म व भूमि की सेवा, अपना स्वार्थ त्याग कर रहे हैं। एक प्रकार से तो उन्होंने देश सेवा करने का व्रत ही धारण किया है। काम करने पर चाहे उनका नाम भले ही हो, लोग 'उनका, भादर सत्कार और मान करें; परन्तु वे कभी अपने नाम प्रयया मान बिलिपे उद्योग नहीं करते। उन पुरुष रनों में से, भारत का मुख उच्चन करने धाने माननीय गोपाल कृष्ण गोखले भी हैं। आज से कुछ वर्षों पहले भापको देशवासियों में से बहुत ही कम लोग जानते थे। शाप एकान्त में प्रात्मत्याग किए बैठे, देश की भलाई का कार्य बिना किती प्रकार का बदला लिए अथवा उसकी इच्छा किए हुए कर रहे थे। परन्तु मणि का प्रकाश का तक न होता, भापके प्रकाश से देशवासियों के क्षेत्र खुले, सर्वत्र लोग प्रापकी चर्चा करने लगे। बंगाल, पंजाब, संयुक्त- मान्त, मदरास रत्यादि सारे देश में, लोग श्रापका प्रादर सम्मान करने लगे।प्रापने भारत को भनाई का जो कुछ कार्य किया अथवा कर रहे ६ उसकी प्रशंसा हमी देश के लोग नहीं करते हैं वरन् इंगलैंड के लोग भी आपकी प्रशंसा मुक्त कंठ से कर रहे हैं। श्राप स्वावलम्बी हैं सय तक लापने जो मुश धन अपया मान प्राप्त किया वह सब आपके जैसा चित्त में होता है वैसा ही बचन बोलते हैं और जसा बोहतेचमा ही करके दिखा देते हैं। सत्पुरुषों का मन, बचन तीनों एक ही तरह के होते हैं।