मिस्टर एप्रो० ह्यूम। (9) इतने बड़े प्रोहदे को क्यों नहीं स्वीकार किया इसकी यह वजह मालूग ...पड़ती है. कि उन्होंने अपनी उमर का बाफ़ी हिस्सा, भारत का हित साधन करने के लिए अर्पण किया। नहीं तो कौन ऐसा होगा जो इतने बड़े मोहदे को इन्कार करके त्याग दे.... परन्तु परोपकारी महात्मा पुरुष दूसरों के हित के लिए सब कुछ त्याग सकते हैं । दूसरों फ़ा. दुःख दूर करने के सामने लाटगिरी उनके लिए . क्या चीज़ थी! मन् १८८२ में उन्होंने 'सरकारी नौकरी छोड़ कर पेन्शन . ली । तय
- से.और अब तक भाप घरायर भारत का हित साधन करने के लिए. तन,
भन, धन से उद्योग कर रहे हैं। प्रापही की कृपा से "इण्डियन नेशनल कांग्रेस की बुनियाद. पड़ी । अतएव श्रापको "भारतीय राष्ट्रीय सभा का पिता" कहने में किसी प्रकार की हानि नहीं है। कांग्रेस की उन्नति के लिए. बीस पचीस हज़ार रुपया आप अपना स्वतः खर्च कर . चुके हैं और समय आने पर आप और भी ख़र्च करने को तस्यार बहुत से ,अंगरेज़ लोग कांग्रेस से अप्रसन्न हैं । अतएव वे लोग श्राप से भी. अप्रसन्न रहते हैं । परन्तु हा म साहव दूसरों की भलाई के सामने, अपने जातियांधवों की कुछ भी परवाह नहीं करते । वे निर्भय होकर भारत की भलाई का काम करते हैं.। वे इगिडयन नेशनल - कांग्रेस की जान है । यद्यपि वे आज कल कई वर्षों से भारत में नहीं हैं परन्तु अपने. स्वदेश में बैठे हुए वे भारत के हित का चिन्तमम. किया करते हैं। विलायत में कांग्रेस की एक कमेटी. है वहां से “इडिया' नाम का एक अंगरेज़ी भाषा में सासाहिक पत्र भी निकलता है। उसी कमेटी में घ म.साहय आज कल काम करते हैं । समय. पड़ने पर वे वहां विला. यती.सरकार को भारत के कल्याण की बातें सुझाया करते हैं। इस समय आपकी उमर फ़रीय करीब ७६ वर्ष की है सीभी वे वहां भारत: की भलाई के लिए बहुत कुछ परिश्रम करते हैं। भारतवासी उनके लिए. जितनी कृतज्ञता प्रकाशित कर सकें उतनी थोड़ी ही है। ; राम साहब को राजनैतिक विषय में ही ज्ञान हो ऐसा नहीं। सेती के काम में भी आपको पूरा पूरा ज्ञान है । जिम ज़माने में वे-इटावे में - >