१० पांग्रेस-धरितायती। हुए। वे पूर्ण विद्वान तो घे ही, परन्तु इनके पढ़ाने की शैली भी अच्छी थी। इसी कारया सय विद्यार्थी उनसे प्रसन्न रहते थे। कुछ दिनों के बाद जम फालिज के मुख्य अध्यापक प्रोफेसर जोजफ पेटन विलायत चले गए तय यह पागह दादा भाई नौरोज़ी को मिली। इससे पहले इतना यहा पद और जिम्मेदारी का काम किसी भारतवासी को नहीं प्राप्त हुमा था। जिस विद्यालय में उन्होंने शिक्षा पाई उसी विद्यालय में वे मुख्या- ध्यापक यन कर शिक्षा प्रदान करने लगे, यह मुश्च साधारण यात नही है । घोर्ट प्राफ एज्यूकेशन" ने अपनी सन् १८५४-५६ यी यार्षिक रपोर्ट में दादा भाई के पस श्रेष्ठ पद पाने के बदले में, यहुत ही प्रशंसा की है। योर्ड के मन्त्री हाकुर एमस्टायेल साहब ने लिसा है कि “यदि तुम अपना कार्यक्रम सरलता और शान्ति के साथ एक चित्त होकर चलाते रहोगे ता.निमुन्देह तुम एक दिन अपने देश के भूपणा यन जानोगे।" दादा भाई के काम करने से उनकी कीर्ति दिनों दिन बढ़ने लगी। परन्तु वे अपने कीर्ति-चक्र की सुस फर किरणों के शीतल प्रकाश से ही सन्तुष्ट होकर शान्ति पूर्वक चुप चाप बैठे न रहे । उनको स्वभावतः कुछ न कुछ उद्योग करने की इच्छा बनी रहती थी। इसी कारण वे शास्त्रा. ध्ययन में लीन होने पर भी अपने कर्तव्य कर्म को भूल नहीं गए। लग भग दस वर्ष तक उन्होंने अध्यापक का काम किया, और इसी के साथ साथ उन्हों ने अपने देश और समाज को लाभ पहुंचाने वाले अनेक काम किए । सन् १८४५ से १८५५ तक जिन लाभकारी सभाओं और समाजों के साथ इनका सम्बन्ध था उनमें से मुख्य मुख्य के नाम नीचे लिखे हैं:- स्टूडेंटस लिटरेरी साईन्टिफिक सोसाइटी, गुजराती ज्ञान-प्रकाशक सभा, याम्ये असोसिएशन, पारसी धर्म सुधारक मण्डली, फ्रामजी कावसजी इंस्टिट्यूट, पारसी व्यायाम गृह, हिन्दू पुनर्विवाहातेजक मंहली, विश्रो रिया एण्ड अलबर्ट पदार्थ संग्रहालय और पुत्री पाठशाला। इन्होंने स्त्री शिक्षा से प्रचार करने में बहुत ही श्रम किया। बम्बई मान्त के सामाजिक सुधार के इतिहास में आप "पुत्री पाठशालाओं के लिए थाने योग्य हैं। जन्मदाता
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