१८ कांग्रेस-धरितायती। सन् १८८६ में श्राप फिर विलायत गए और वहां पार्लियामेंट में प्रवेश करने का उद्योग करने लगे। पार्लियामेंट में मेम्बर होना और खास कर एक भारत-यासी के लिए बड़ा कठिन काम था। परन्तु मापने "उद्यमेन हि सिध्यति कार्याणि" इस वचन पर विश्यास करके तन, मन, धन से काम फरना प्रारम्भ किया । इंग्लगह में राजा का अधिकार नियमित है। यहां राज्य का प्रबंध मजा के प्रतिनिधि लोगों की मार्फत होता है। इन प्रति- निधियों को जो एक बड़ी सभा है उसे पार्लियामेंट कहते हैं। यही पार्लियामेंट अंगरेज़ी साम्राज्य की कार्य भूमि है। हमारे देश के राजकीय दुःखों का निवारण करना इसी सभा के सभासदों पर भवलम्धित है। भारत की सारी प्रजा का दुःख सुख सब इन्हीं के हाथ में है। अतएय भारत. वासियों के दुःख को राम कहानी जय तक इन को न सुनाई जायगी तब तक राजकीय सुधार की कुछ आशा नहीं। यही सब बाते सोध समझ कर दादा भाई ने अपने मन में ठान लिया फि पार्लियामेंट में प्रवेश करके, वहीं भारत-वासियों की दुर्दशा का चित्र सारे सभासदों के सामने खींच कर यताना चाहिए । तर शायद भारत का कुछ भला हो और लोगों के दुःख दूरहों। वृदिश-राज्य पति बहुत ही शुद्ध मोर सरल तत्वों पर बनी है। पसी लिए किसी जाति अथवा धर्म का मनुष्य पार्लियामेंट का मेम्वर हो सकता है। परन्तु शर्त यह है कि उस पुरुप का निर्वाचन वृटिश प्रशा द्वारा हो, जिसे निर्वाचन करने का अधिकार प्राप्त हो और यह पुरुष राजभक हो। जय दादाभाई सन् १८८६ में, विलायत गए तय उसी साल वहां पार्लियामेंट के सभासदों का धुनाथ हुभा । उस धुनाय में ये भी हालयो- नयरो की ओर से एक उम्मेदवार (Candidate) बन कर खड़े हो गए और निर्याचा लोगों को अपने पक्ष में लाने का उद्योग करने लगे। प्राप ने हालयोन नियासी निर्वाचफ लोगों के सूचनाएं एक प्रार्थना पत्र प्रकाशित किया। जिसमें उनकी उदारता और न्याय प्रियता को यथार्थ स्तुति करके यह मूचित किया गया कि "यदि आप लोग मुझे अपनी भोर से प्रतिनिधि धनादें तो मुझ पर और मेरे देश पर भाप की
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