पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/५१

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सर फीरोजशाह एम मेहता के० सी० भाई० ई। घर्ष बाद, सन् १८७२ में, म्युनिसिपल कमिश्नर मिस्टर भार्थर काफ़ाई के मन में यह तरंग उठी कि, यम्बई नगर पैरिस सरीखा होना चाहिए। धम्बई की सड़कें, घर सय नई पनवाई जावें। कहीं कहीं पर भुन्दर तालाव, नवीन पुल, उत्तम उत्तम धाग बगीचे, विशाल भवन और क्रय विक्रय योग्य अच्छे अच्छे गंज, बाज़ार इत्यादि २ तय्यार हों । परन्तु इस तरंग में उन्हें यह न सूझी कि म्युनिसिपैलटी के पास धन है अथवा नहीं? यदि है तो कितना ? और हमारा मनोरथ उतने धन से पूरा हो सकेगा या नहीं? इस यायत उन्होंने बिलकुल विधार नहीं किया। इस कारण यम्बई म्युनिसिपैलिटी पर बहुत ही अधिक कर्ज हो गया। इसका परिणाम यह निकला कि, यह बात भारत सरकार के कान तक पहुंची । कमिश्नर साहब अपने काम से अलग कर दिए गए। यह होने पर “फ्राम जी कावस जी इन्स्टिट्यूट" में "प्रात्मशासन प्रणाली के नियमों का सुधार" इस विषय पर मेहता ने एक बहुत ही उत्तम प्रभावशाली नियंध पढ़ा । उस निबंध द्वारा आप ने यह सिद्ध किया कि, ऐसे कामों की देख भाल रखने के लिए एक कमेटी बनाई जाये और एक एफ़ज़िक्यूटिय कमिश्नर नियत किया जावे, जो सब काम करे । फई एक आदमियों के हाथ में फाम देने से लोगों के विचार और मत भिन्न होने के कारण काम ठीक ठीक व्यवस्थानुसार नहीं होता। इस बात को आप ने बहुत ही उत्तमता के साथ वर्णन किया। परन्तु मेहता महोदय के उद्देश्य को उन लोगों ने जो उस समय सभा में उपस्थित थे बिलकुल नहीं समझा। अतएव उस समय उन्होंने मि० मेहता की सून इंसी उड़ाई। लोगों ने भाप पर यह दोषारोपण किया कि, आप कमिश्नर क्राफर्ड माहब के साथी हैं, उनके अनुपायी और मददगार हैं। परन्तु सरकार ने भाप के निबंध का मतलब समझ कर, सन् १८७२ में नवीन म्युनिसिपल ऐक पास किया । जो बात सन् १८७० में, मेहता महोदय ने कही थी और उस पर लोगों ने उनकी दिल्लगी की और हंसी उड़ाई, वही घात अय सर्वमान्य हुई । राजा और मजा दोनों ने प्राप के कथन को खीकार किया। जिन लोगों ने उस समय उनकी हंसी की थी वेही