बाबू रमेशचन्द्र दत्त । E3 . करते रहे । २६ वर्ष सरकारी नौकरी करके आप ने पेन्शन ली। आप ने अपनी बुद्धिमानी से सरकार और मजा दोनों को प्रसन्न रक्खा । अलबर्ट- दिल के समय मापने सर भंटानी मेकडानेल को यहुत सहायता पहुंचाई थी। आप ने कभी सरकार प्रथया भारतीय प्रजा को किसी प्रकार का धोका नहीं दिया । अवसर पड़ने पर जो हित की बात होती थी उसे भाप सरकार और प्रजा दोनों को यतला देते थे । सरकारी अनुचित कार्य का आप सदैव खंडन करते थे। सच यात कहने में भाप कभी नहीं धके । आप के गुणों पर सरकार भी मोहित थी। सरकार के कोपभाजन भाप कभी नहीं हुए । सदय सरकार भाप से प्रसन्न रही । आपके उत्तम कामों के बदले में सरकार ने माप को सन् १८८३ में सी० आई० ई० का खिताब दिया। उसी साल श्राप उड़ीसा के कमिश्नर यनाए गए। इससे
- पहले किसी भारतवासी को इस प्रोहदे पर सरकार ने कभी निपत नहीं
किया। इस जगह का काम भाप ने बड़ी उत्तमता के साथ किया। कमिश्नरी का काम उत्तम प्रकार से करके आप ने यह साबित कर दिया कि यदि सरकार देशियों को भी अच्छे अच्छे मोहदे दे तो वह किस तरह अंगरेजों से कम वेतम लेकर अच्छा काम कर सकते हैं । राज- सेवा, और देशसेवा, दोनों एक प्रादमी (अगर वह करना चाहे तो) अच्छी तरह कर सकता है। यह यात रमेश बाबू ने करके सरकार को दिखला दी। जो पुरुप राजरोवा और देशसेया दोनों साथ साथ करता है वही राजा प्रजा दोनों की भलाई कर सकता है। सरकार के सामने रमेश बाबू ने यह एक मिसाल प्रत्यक्ष कर दी । रमेश वायू के जीवन का बहुत सा समय सरकारी नौकरी करने में गया, प्रतएव भाप के चरित के बहुत से भाग में कोई ऐसी विलक्षण बात नहीं जो लिखने के 'काबिल हो । हां, उनकी अलोकिक बुद्धि और उनकी उच्च शिक्षा द्वारा जो राजा और प्रजा दोनों को सुख और लाभ पहुंचा उसका थोड़ा सा उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। सरकारी नौकरी से पेन्शन होने के बाद से भाप भय तक दो तीन बातों पर अधिक ध्यान रखते हैं। एक तो राज पद्धति में जो दोष हैं उनके सुधार के लिए समय समय पर, .