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पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/८४

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६८ कांग्रेस-परितायली। सरकार को सूचना देते रहते हैं । दूमरे यंग साहित्य की उन्नति की भोर भी प्रापका अधिक ध्यान है। आप सदैव यंग भाषा में उत्तमोत्तम पुस्तकें लिस फर प्रकाशित करते हैं। तीसरे राष्ट्रीय उन्नति के लिए भी आप बहुत कुछ उद्योग करते हैं । सन् १९०० ई० में जो राष्ट्रीय सभा की बैठक लखनऊ में हुई थी उसके भाप सभापति श्राप की विद्वत्ता एक देशीय नहीं है। प्रतएय प्रापका प्रयत्न मी एक देशीय नहीं । राजकीय, ऐतिहासिक, समाजिक, इत्यादि जो जान अयया देश-हित की अलग अलग शासाये हैं उन सयों में आपका अच्छा प्रयेश है । प्रतएव सब प्रकार से प्राप देशसेवा करने को सदैव तय्यार रहते हैं। राजकीय विषय की पुस्तके लिए कर राज कर्मचारियों को सचेत करते हैं; व्याख्यान देकर प्रजा को उनके अधिकार यतलाकर सपेत करते हैं। सन् १८५२ में जब आप विलायत से वापस लाए तव भापकी भेंट बंगाली भाषा के प्रसिद्ध उपन्यास लेखक यायू बंकिमचन्द्र से हुई । उस समय बंकिम यायू का "बंग दर्शन" नामक मासिक पत्र निकलता था। उसमें घंकिम बाबू के लिखे हुए उपन्यास प्रकाशित होते थे। एक दफा का ज़िक्र है कि रमेश याय ने बंकिम चाय के उपन्यासों की तारीफ़ यी में । इस पर वंफिम याबू ने कहा कि "गुण ग्रहण करने की अलौकिक शक्ति हैं, तुम स्वयं क्यों नहीं लिखते ?" रमेश वाबू ने कहा कि "मुझे बंगाली भाषा लिखने की शैली तक मालूम नहीं फिर मैं उस भाषा में ग्रंथ कैसे लिखू?" रमेश घावू का यह उत्तर सुन कर बंकिम वायू ने कहा कि "आप सरीखे विद्वान् को ऐसा कहना उचित नहीं, जिस रीति से प्राय लिखें वही भाषा पटुति, बाकी और यातें जो पुस्तक लिखने के लिए ज़रूरी हैं वह आप की विद्वत्ता से मय प्रापको साध्य है।" बंकिम बाबू के इस उपदेश का रमेश बाबू पर बहुतही अच्छा असर पड़ा । आपने इस वार्ता के दो साल बाद ही सन् १८५४ में 'यंगविजेता' नामक उपन्यास लिख कर प्रकाशित किया। इसमें बाद 'माधवी का जीवन प्रभात, जीवन संध्या, ये तीन और ऐतिहामिक