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पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/९३

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मिस्टर नारायण गोश चन्दायर कर। 39 सभापति हुए और चन्दायरकर ने फंड के उद्देश्यों पर एक प्यास्यान दिया। उस व्याख्यान को मनोहरता पर लोगों ने मापफी यत तारीफ की। और आप के यहुत ही अच्छे वक्ता होने की कीर्ति चारों ओर फैल गई । उस टपारमान को सुनने के लिए यम्बई में लाई रिपन भी पधारे थे। उन्होंने व्यारयान मुन कर अपनी यह राय दी थी कि 'इनके भाषण में..ऐसा मायेग है फि प्रोतानों के मन पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है। अंगरेजी भाषा के प्रयीण वक्ता के गुण प्रापमें मौजूद हैं। पह तारीफ़ बहुत बड़ी योग्यता रखने वाले अंगरेल के मुंह से निकली हुई है। यह बात कुछ सामान्य नहीं है। ऐसी तारीफ़ भारतवासियों में से बहुत कम लोगों की होती है। ' , सन् १८८६ में, हिन्दू सामाजिक सुधार की सभा मदरास में हुई । ठस सभा के सभापति आप नियत हुए। उस समय महादेव गोविन्द रानो ने आपको उस मुधारकसभा का सभासद भी धनाया। कुछ दिनों तक भाप घम्यई मार्थनासमाज के उपसभापति भी रहे । सन् १८८६ में, एक मान्तिक सभा करांची में हुई थी उसके भी प्रापसभापति हुए। सन् १८८७ में, आप यम्पई विश्वविद्यालय की ओर से यम्बई लेजिस- लेटिव कौसल के मेम्बर मुकर्रर हुए । इस प्रकार का उत्तम निर्वाचन शिक्षा विभाग की ओर से देख कर लोगों को बड़ा प्रानन्द हुमा। चन्दायरफर का ध्यान स्वदेश कल्याण की ओर बहुत ही ज्यादा है। एक बार आपने व्याख्यान देते समय यह कहा था कि "जीसव से बड़ा गुण जर्मन और अंगरेज़ लोगों में हैं वह हम लोगों में नहीं है। यह गुण यह है कि, 'जिस काम को एक दफ़ा हाथ में लिया उस को पूरा करने में चाहे जैसे विघ्न उपस्थित हों परन्तु वे लोग उसे वगैर पूरा किए हुए नहीं छोड़ते'। इस गुणा को हम सब लोगों को ग्रहण करना चाहिए। हम लोगों में दूसरों की ओर मुंह ताकने की जो आदत है उसे त्यागना चाहिए । जो कुछ काम हम करें वह अपने पराक्रम के भरोसे पर । ऐसा - करने की हिम्मत हम में आना चाहिए । हमारे प्रिय मित्रो! आप ही इस देश की भावी स्थिति के स्वामी हैं। भविष्यत में इस देश की