काजर की कोठरी घूम कर देख-भाल कर रही थीं। जिस समय लालसिंह सरला का काठडामपहुधा-सन वहा का अवस्था देखी, घबडा गया और खून के छोटो पर निगाह पडते ही उसकी आखो से आसू की नदी बह चली। उसे थोड़ी देर तक तो तनोबदन की सुघ न रही फिर बडी कोशिश से उसने अपने का सभाला और तहकीकात करने लगा। कई औरतो और लौंडियो के उसने इजहार लिए मगर इससे ज्यादे पता कुछ भी न लगा कि सरला यकायक अपनी कोठडी मे से ही कही गायब हो गई। उसे किसी ने भी कोठडी के बाहर पैर रखते या कही जाते नही देखा। जब लालसिंह ने खून के निशान और छोटा पर ध्यान दिया तो उसे बडा ही आश्चय हुआ क्योकिखून के जो कुछ छोटे या निशान ये सब काठडी के अन्दर ही थे, चौकठ के बाहर इस किस्म की कोई बात न थी। वह अपनी स्त्री को होश में लाने और दिलासा देने का बदोबस्त करखे बाहर अपने कमरे मे चला आया जहा से उसी समय अपने समधी कल्याणसिंह के पास एक आदमी रवाना करके उसकी जुबानी अपन यहा का सब हाल उसने कला भेजा। रात-भर रज और गम मे बीत गया। सरला को खोज निकालने के लिये किमी ने कोई बात उठा न रक्सी, नतीजा कुछ भी न निकला। दूसर दिन दो पहर बीते वह आदमी भी लौट आया जो बल्याणसिंह के पास भेजा गया था और उसने वहा का सब हाल लालसिंह से कहा जिसे सुनते ही लालसिंह पागल की तरह हो गया और उसके दिल मे कोई नई बात पैदा हो गई, मगर जिस समय उस आदमी ने यह कहा कि 'खून-खराबे का सब हाल मालूम हा जान पर भी हरनदसिंह को किसी तरह का रज न हुआ और वह एक रण्डी के पास जिसका नाम बादी है और जो नाचने के लिए उसके यहा गई हुई थी जा बैठा और हसी-दिल्लगी में अपना समय बितान लगा, यहा तक कि उसके बाप ने बुलाने के लिए कई आदमी भेजे मगर वह बादी के पास से न उठा, आखिर जब स्वय रामसिंह गये तो उसे जबरदस्ती उठा लाये और लानत-मलामत करने लगे 'तो लालसिंह की हालत बदल गई। उसके लिए यह खबर बडी ही दुखदाई थी। यद्यपि वह सरला के गम मे अधमू आ हो रहा था तथापि इस खबर ने उसके बदन
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