काजर की कोठरी - पहली मरातब मे बाजार की रिकि एक बहुत बड़ा कमरा और दोनों तरफ दो कोठडिया तया उन कोठडियो मे से दूसरी पोठडियो में जाने की रास्ता बना हुआ है और पिछवाडे की सरफ केवल पांच दर का एक दालान है। दूसरी मरातब पर चारो कोनो मे चार कोठडिया और बीच में चारा तरफ छोटे-छोटे चार वमरे हैं। तीसरी मरातब पर केवल एक बैंगला और बाकी का मंदान अर्थात खुली छत है। इस समय हम बादी को इसी तीसरी मरातब वाले बगले मे बैठे देखते हैं। उसके पाम एक आदमी और भी है जिसको उम्न लगभग पच्चीस वप होगी। कद लम्बा, रग गोरा, चेहरा कुछ खूबसूरत, बही-बडी आखें, (मगर पुतलियो का स्थान स्याह हाने के बदले कुछ नीलापन लिए हुए था) भवें दोनो नाक के ऊपर से मिली हुई, पेशानी सुक्डी, सर के बाल बडे-बडे मगर घुघराले है । बदन के कपडे-पायजामा चपकन, रूमाल इत्यादि यद्यपि मामूली ढग के हैं मगर साफ हैं, हा, सिर पर कलावतू कोरमा बनारसी दुपट्टा बाधे हैं जिससे उसकी ओछी तथा फैल मूफ तबीयत का पता लगता है। यह शख्स बादी के पास एक बड़े तकिए के सहारे झुका हुआ मीठी-मीठी बातें कर रहा है। इस बगले की सजावट भी बिल्कुल मामूली और सादे ढग की है। जमीन पर गुदगुदा फश और छोटे-बडे कई रग के बीस-पच्चीस तकिए पडे हुए हैं दीवार म केवल एक जोडी दीवारगीरभीलगी है जिसमे रगीन पानी के गिलास की रोशनी हो रही है। बादी इस समय बडे प्रेम से उस नो- जवान की तरफ झुकी हुई बातें कर रही है। नौजवान मैं तुम्हारे सर की क्सम खाकर कहता हूं, क्योकि इस दुनिया मे मैं तुमसे वढबर किसी को नहीं मानता। बादी (एक लम्बी मास लेकर) हम लोगो के यहा जितने आदमी बात हैं सभी लम्बी-लम्बी क्समे खाया करते हैं मगर मुझे उन कसभो को कुछ परवाह नहीं रहती परन्तु तुम्हारी कसम मेरे कलेजे पर लिखी जाती हैं क्योंकि मैं तुम्हें सच्चे दिल से प्यार करती हू । मौजवान यही हाल मेरा है। मुये इस बात का खयाल हरदम वना रहता है कि बाप-मां भाई-बिरादर,देवता धम सबस बिगड जाय तो बिगड जाय मगर तुमसे क्मिी तरह कभी बिगडने या मूठे बनने की नौबत न