पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/२४

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24 गाजर की पारी माये । सच तो यो है कि मैं तुम्हारे हाथ विव गया हूँ वलि अपनी खुशी और गिदगी यो तुम्हारे ऊपर न्योछावर कर पुपाहू और येवल तुम्हारा ही भरासा रसता है। देखो, अब पी दफै मेरी मा गवमुच मगे दुश्मन हा गई मगर मैंन उसाधुछ भी सयास न किया, हाथ लगी रकम के मोटान का इरादा भी मन म न आने दिया और तुम्हारी सातिर यहा तब ला ही छोटा । अभी तो मैं कुछ यह नही सरता, हा, अगर ईश्वर मेरी सुन लगा और तुम्हारी मेहनत ठिसाने लग जाएगी तो मैं तुम्ह माला माल पर दूगा। घादी मैं तुम्हारी ही क्मम सापर यही वि मुमे धन दौलत पा कुछ भी सपाल नहीं। मैं तो वेवल तुमा चाहती औरतुम्हार लिए जान नप देने को तैयार है मगर क्या पर मरी अम्मा यही चाडालिन हा पर एक दिन भी मुझे रुलाए बिना नहीं रहती। अमी पल का मात - पि दोपहरवे रागय मैं सी बगल म चठी हुई तुम्म याद पर रही थी, माता मीना पुछ भी नहीं दिया था, चार-पाच दफे मरी अम्मा मह चुकी थी मगर मैंन पट-दद मा यहाना परके टाल दिया था तपार रो न मालम पहाना मारा-पीटा एय सर्दार आ पट्टया और अम्मा जान को यह जिह हुइ कि मैं उसके पारा अवश्य जाऊ जिसे उहाने बडी पातिर से नीचे चाल पमरम अंठा रखा था। मगर मुझे उम ममम सिवाय तुम्हारे खयाल वे और कुछ अच्छा नहीं लगता था, इसलिए मैं यहा बैठी रह गई, नीचे न उतरी, यम अम्मा एक्दम यहा चली आइ और मुथै हमारा गालियान लगी और तुम्हारानाम से लेकर कहने लगीकिपारमनाय आयेंगेतो रात रातभर वठी बातें क्यिा करेगी और जब कोई दूसरा मर्दार आकर बैठेगा ता उसे पूछेगी भी नहीं । आखिर घरवासच बसे चलगा? इत्यादि बहत कुछ धक गर मगर मैंने वह चुप्पी साधी पि मर सर न उठाया जाखिर बहुत वर यय पर चली गई। फिर यह भी न मालूम हुआ वि अम्मा ने उम मार को क्या यह घर विदा क्यिा या क्या हुआ। एक दिन की कौन कह रोज ही ग तरह की खटपट हुआ करती है। पारस खरयोडे दिन और सद्र बरो, फिर तामैं उह ऐसा सुश कर दूगा कि वह भी याद करेंगी। मेर चाचा की मापी जायदाद भी कम नहीं है अस्तु जिस समय वह तुम्ह यगमा की तरह ठाठवाटसे देखेंगी और खजान