पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/२५

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कार की काठी 23 पी तातियो का झब्बा अपनीवरधनी स लटकता हुआ पावेगी उस समय "हे बोलने का कोई मुह न रहेगा, दिन-रात तुम्हारी यलाग लिया करेंगी। बादी तब भला वह क्या कहने लायक रहेंगी और आज भी वह मेरा क्या कर सकती हैं ? अगर विगड पर सही हो जाऊ तो उनपे किये कुछ भी न हो, मगर क्या करू लोर-निन्दा से डरती हूँ। पारम नहीं-नही, ऐसा कदापि न करना। मैं नहीं चाहता कि नुन्हारी किसी तरह की बदनामी हो और मर्दार लोग तुम्हारी हिठाई की घर घर मे चर्चा करें, अब नी मैं तुम्ह रत्तीभर तवलीफ होने न दगा और नुम्हारे घर का खर्चा किसी न किसी तरह जुटाता ही रहूगा । - वादी नहीं जी मैं तुम्हें अपने पर्चे के लिए भी तकलीफ देना नहीं चाहती, मैं इस नायक विरहुत से मर्दारो को उल्लू बनाकर अपना खप निकाल लू । तुमम एप पैसा लेन की नीयत नही रखती, मार क्या करू अम्मा मे लाना हू 'मी से जा चुछ तुम देत हो उना पाता है। अगर उनक हाथ म मैं यह कहकर कुछ र न दू कि पारम बाबू ने दिया है ता व बिगडने लगती हैं और कहती हैं कि ऐसे मर्दार का आना-क्सि कामया जो विना कुछ दिए चला जाण ।' मैंने तुमसे अभी तर तो माफ-साफ नहीं यहा, आज जिन आन पर कहनी हू वि उह खुश करन वे लिए मुये वडी बडी तरकीच करनी पड़ती है। और मर्दारा स जा कुछ मिलता है उसर । पूरा पूरा हात ता उह मालूम हो ही नहीं ममता इसस उन रकमा से मैं बहत कुछ रचा रखती हू । जिस दिन तुम बिना कुछ दिये बन जाते हो उग दिन अपन पाम से उन्हें कुछ देवर तुम्हारा दिया हुआ बता देती ह यही नबव है कि वह ज्याद ची चपट नहीं कर सकती। पारम यह तो मैं अच्छी तरह जााता हूक्तुिम मुझेजी जान से चाहती और मुझ पर मेहरबानी रखती हो मगर क्या वर लाचार है तो भी इम वात की कोशिश करू गा वि जर तुम्हारे यहा आऊ तुम्हारे वास्त कुछ. न कुछ जर नेता आऊ । बादी अजी रहा भो तुम तो पागल हुए जाते हो । इसी से मैं तुम्ह सब हाल नही रहती थी, जब मैं उह किसी न किसी तरहखुश कर ही लेती हूं तो फिर तुम्हे तरदुद करने की क्या जरूरत है ? ~