पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/२८

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28 वाजर की कोठरी कभी न देना चाहिए। मगर यही तो हम लोगा की चालाकी है । हमे दोनों तरफ से फायदा उठाना और दोना को अपना आसामी बनाये रखना ही उचित है। बादी तो फिर क्या तरकीब की जाय' बादी की मा हरन दन बाबू को सरता का पता बताना और मानसिंह बोहरन दन की मूरत दिखाना, ये दोनो काम एक ही समय में होने चाहिए। इसके बाद हम लोग लालसिंह मे बिगड जायेंगे और उसे यहा से फोरन निकल जाने के लिए कहेंगे उस समय हरन दन बाबू को हम लोगो पर शक न होगा। बादी मगर इसके अतिरिक्त इस बात की उम्मीद कब है कि हर नन बाबू से बहुत दिनो तक फायदा होता रहेगा? बादी की मा (मुस्करावर) अरे हम लोग बड-बडे जतिया का मुरुण्डा कर लेती है, हरन दन हैं क्या चीज अगर मेरी तालीम का अमर तुझ पर पडता रहगा तो यह कोई बड़ी बात न होगी। बादी कोशिश तो जहा तक हो सकेगा वरूगी मगर मुनन मे बराबर यही आता है कि हरन दन बाबू को गान-बजाय का या रडियो में मिलन या कुछ भी शीव नहीं है बल्कि वह रडियो नाम से चिढता है। बांदी की मा ठीक है, इस मिजाज के मैक्डा आदमी हात आर है, मगर उनके खयाला वी मजबूती तभी तव कायम रहती है जब तन व रिसी न किसी तरह हम लोगा ये घरमपर नहीं रखते, और जहा एर दफे हम लोगो के आचल की हवा उह लगी नहीं उनके खयालाही मजबूती म फक पडा । एक-दो कौन रहे पचासा जती और ब्रह्मचारियो की खबर तो में ले चुकी हू । हा अगर नरे विए कुछ हो न सके तो बात ही दूसरी है। इसी किस्म की बात हो रही थी कि साडी न हरन दन बाबू ने आन से खबर दी । सुनत ही बांदो घबराह के साथ उठ खडी हुई और बीस- पच्चीस कदम आग बढकर वटी मुहम्बत और खातिरदारी का वर्ताय दिसाती हुई उसीयोठडीरे दरवाजे तब ल आई जिसमे बटवर अपनी मा म बातें कर रही थी और जहा मनी मा सलाम करने की नीयत स .