पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काजर की कोठरी 29 खडी थी। अस्तु, वादी की मा न हरन दन बाबू को झुककर मलाम करने के बाद वादी से कहा, "बादी आपका यहा मत बैठाओ जहा अक्सर लोग आते-जाते रहते हैं बल्कि ऊपर वगले ही मे ले जाओ क्योकि वह अप ही के लायक है और आपको पस द भी है।" इतना कह कर वादी की मा हट गई और बादी हा एसा ही करती ह' कह कर हरन दन बाबू को लिए ऊपर वाले उसी बगले में चली गई जिसमे थोडी देर पहिले पारसनाय बैठकर बादी के साथ चारा-बदलोबल' पर चुका था। हरनन्दन वाबू बडी इज्जत और जाहिरी मुहब्बत के गाय बैठाए गए और इसके बाद उन दोनो मे या बातचीत होने लगी- वादी कल तो आपने खूब छकाया | दो बजे रात तक मैं बराबर बैठी इन्तजार करती रही गाखिर बडी मुश्किल से नीद आई सो नोट म भी बराबर चौंकती रही। हरन दन हा, एक ऐसा टेढा काम आ पडा था कि मुये कल बारह 'बजे रात तक बाबूजी ने अपने पाम से उठने न दिया उस समय और भी कई आदमी वठे हुए थे। बादी तभी ऐसा हुआ | मैं भी यही सोच रही थी कि आप बिना किसी भारी सबब के वादाखिलाफी करने वाले नहीं हैं। हरनन्दन मैं अपने वादे का बहुत बडा खयाल रखता हू और किसी को यह कहने का मौका नहीं दिया चाहता कि हरन दन वादे के सच्चे नहीं 1 बादी इस बारे मे तो तमाम जमाना आपको तारीफ करता है। मुझे आप ऐसे सच्चे सर्दार की सोहबत का पत्र है । अभी क्ल मेरे यहा बी इमामीजान आई थी। बात ही बात मे उहोने मुझे वह ही तो दिया कि हाबादी, अब तुम्हारा दिमाग आसमान के नीचे क्यो उतरने लगा हरन दन बाबू ऐस सच्चे सार को पाकर तुम जितना घमण्ड करो योटा है ।'मैं समझ गई कि यह डाह से ऐसा कह रही है। हरनन्दन (ताज्जुब की सूरत बना कर) इमामीजान को मेरा हाल कसे मालूम हुआ ? क्या तुमने वह दिया था?