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पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/३०

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31) काजर की पाठरी बादी (जोर देवर) अजी नहीं, मैं भला क्या कहने लगी थी ? यह काम उसी दुष्ट पारमनाथ का है। उसी ने तुम्हें कई जगह बदनाम दिया है। मैं तो जब भी उसको सूरत देखती हू मारे गुस्स के आखो मे खून उतर आता है, यही जी चाहता है कि उस बच्चा ही खा जाऊ, मगर क्या करू, लाचार हू, तुम्हारे माम का खयाल पर रुक जाती है। क्ल वह फिर मेरे यहा आया था, मैन अपने क्रोध का बहुत रोका मगर फिर भी जुबान चल ही पडी, वात ही बात म कई जली क्टी कह गई। हरलदन लेकिन अगर उससे ऐसा ही मूसा बर्ताव रखोगी तो मेरा पाम कैसे चलेगा? वादी आप ही के काम का स्याल तो मुझे उससे मिलन पर मजबूर करता है, अगर ऐसा न होता तो मैं उसकी वह दुगति करती कि वह भी जाम भर याद करता। मगर उसे आप पूरा बहया समझिये, तुरत ही मेरी दी हुई गालियो को बिल्कुल भूल जाता है और खुशामदें वरन लगता है। कल मैंने उसे विश्वास दिला दिया कि मुझसे और आप (हरन दन) मे लडाई हो गई और अब सुलह नही हा सकती, अब यकीन है कि दो-तीन दिन मे आपका काम हो जायेगा। हरनन्दन मरे हा, परसो उसी कम्बख्त की बदौलत एस बड़ी मजेदार बात हुई। बादी (और आगे खसक कर और ताज्जुब के साथ) क्या, क्या हरन दन उसी के सिखाने-पढाने से परसा लालसिंह ने एक आदमी मेरे बाप के पास भेजा। उस समय जबकि उस भादमी से और मेरे बाप से बातें हो रही थीं इत्तिफा से मैं भी वहा जा पहुचा। यद्यपि मेरा इरादा तुरन्त लौट पहने का था मगर मेरे बाप ने मुझे अपने पास बैठा लिया, लाचार उन दोनो की बातें सुनने लगा। उस आदमी ने लालसिंह की तरफ से मेरी बहुत सी शिकायतें कीं और बात-बात में यही कहता रहा कि 'हरनन्दन बाबू तो बादी रण्डी को रखे हुए है और दिन रात उसी के यहा बैठे रहते हैं, ऐस आदमी को हमारी लडकी के गायब हो जाने ना मला क्या रज होगा?' मेरे पिता पहिले तो चुपचाप बैठे देर तक ऐसी बातें सुनते रहे, मगर जब उनको हद से ज्याद गुस्सा चढ आया 7