पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/३१

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काजर की कोठरी 31 अब नब उम आदमी स डपट पर बोले, "तुम जाकर लालसिंह को मेरी तरफ ने कह दो कि अगर मेरा लडका हरनन्दन ऐयाश है तो तुम्हारे बाप का क्या लेता है ? तुम्हारी लडकी जाय जहन्नुम मे और अब अगर वह मिल भी जाय तो मैं अपन लडके की शादी उमसे नही कर सकता। जो नौजवान औरत इस तरह बहुत दिना तक घर से निकल कर गायब रहे वह किसी भले आदमी के घर मे ब्याहुता बनकर रहने लायक नहीं रहती मुन लो कि मेरे लडके ने खुल्लम खुल्ला बादी रडी को रख लिया है और उसे बहुत जल्द यहा ले आवेगा। बस तुम तुरन्त यहा से चले जाओ, मैं तुम्हारा मुह देखना नहीं चाहता।।" इतना सुनते ही वह आदमी उठ कर चला गया और तब मेरे बाप न मुझसे कहा, 'बेटा | अगर तुम अभी तक वादी से कुछ वास्ता न भी रखते थे तो अब खुल्लमखुल्ला उसके पास आना जाना शुरू कर दो और अगर तुम्हारी ख्वाहिश हो तो तुम उसे नौकर भी रख ला या यहा ले आओ। मैं उसके लिए पाच सौ रुपये महीने का इलाका अलग कर दू गा बल्कि थोडे दिन बाद वह इलाका उसे लिख भी दूगा जिसमे वह हमेशा आराम और चैन से रहे। इसके अलावा और जो कुछ तुम्हारी इच्छा हो उसे दो, मैं तुम्हारा हाय कभी न रोकूगा--देखें तो सही लालसिंह हमारा क्या कर लेता ह ।।" बादी (बडे प्यार से हरनन्दन का पजा पकड कर) सच कहना क्या हकीकत मे ऐसा हुआ हरनन्दन (वादी के सर पर हाथ रख के) तुम्हारे सर को कसम, भला मैं तुमस झूठ बोलूगा तुमसे क्या मैंने कभी और किसी से भी आज तक कोई बात भला झूठ कही है ? वादी (खुशी से) नही नहीं, इस बात को मैं बहुत अच्छी तरह जानती हूं कि आप कभी किसी से झूठ नहीं बोलते । हरन दन और फिर इस बात का विश्वास तो और लोगों को भी थोड़ी ही देर मे हो जायेगा क्योकि आज मैं किसी से लुक छिप के यहा नहीं आया हू बल्कि खुल्लमखुल्ला आया हूँ। मेरे साथ एक सिपाही और एक नोकर भी आया है जिहें मैं नीचे दर्वाजे पर इसलिए छोड आया ? -