पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पाजर की कोठरी 33 हरनन्दन खेर जैसा तुम कहोगी वैसा ही परूगा, मगर इस बात का खूब समझ रखना कि आज से तुम हमारी हो चुकी, तुम्हारा विल्कुल सच मैं अदा करूगा और तुम्हें किसी के आगे हाथ फैलाने का मौका न दूगा। आज से मैं तुम्हारा मशाहरा मुकररमर देता हूँ और तुम भी गरों के लिए अपन घर का दर्वाजा वद कर दो। बादी जो कुछ आपका हुक्म होगा मैं वही करू गी और जिस तरह रक्खागे रहूगो । मेरा तो कुछ ज्यादे सच नहीं है और न मुये रपय-पंसे की लालच ही है मगर क्या करू अम्मा के मिजाज से लाचार हू और उसका हाथ भी जरा शाह-खच है। हरन दन तो हज ही क्या है, जब रुपये-पैसे की कुछ कमी हो तो ऐसी गता पर ध्यान देना चाहिये। जब तक में मौजूद है तब तक किसी तरह की फिक्र तुम्हारे दिल में पैदा नही हो सकती और न तुम्हारा बाई शोष पुरा हुए बिना रह सपता है, अच्छा जरा अपनीअम्मा को तो बुला लाओ। गादी वहुत अच्छा, मैं खुद जावर उन्ह अपने साथ ले आती है। इतना वह कर वादी हरन द वे मोढे पर दबाव डालती हुई उठ खडी हुई और कमर को बल देती हुई ठडी के बाहर निकल गई। थोडी देर तक हमार हरन दन वायू या अपने विचार मे डूबे रहने का मौरा मिला और इसके बाद अपनी अम्माजान को लिए हुए बादी आ पहुंची। बादी हरनन्दन से कुछ दूर हट कर बैठ गई और बुढिया आपत की पुडिया ने हम तरह बातें करना शुरू किया- बुढिया खुदा सलामत रक्खे बाल-आले मरातिब हा, मैं तो दिन- गत दुआ करती हू, कहिए क्या हुक्म है हरनन्दन बडी बी । मैं तुमसे एक बात पहा चाहता हूँ । बुढिया कहिये, कहिय, क्या बादी से कुछ बेअदबी हो गई है ? हरनन्दन नही नहीं, बादी बेचारी ऐसी बेअदब नही है कि 'उससे किसी तरह वारज पहुंचे। मैं उससे बहुत खुश हू और इसीलिए मैं उसे हमेशे अपने पास रखना चाहता हूँ। बुढिया ठीक है, अगर आप ऐसा अमीर इसे नोकरन रक्खेगा तो रक्वेगा की? और अमीर लोग तो ऐसा करते ही हैं। मैं तो पहिले ही ? 1 -