पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/४४

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44 गाजर की कोठरी तब तुम घर मे न थे। पारस० (ताज्जुब स) में तो रात को घर मे ही था ! किस समय आपने याद किया था? लाल. उस समय मैं अपने तरदुदो मे डूबा हुआ था इसलिए ठीर- ठीक नहीं कह सकता कि कितनी रात गई होगी । पारस. ठीक है, तो बहुत रात न गई होगी, क्योकि जब मैं लौट कर घर आया था तब पहर भर से ज्यादे रात न गई थी। लाल० शायद ऐसा ही हो। पारस० मैं रात को मापने पास आया भी था मगर सुना कि आप विसी अनजान आदमी के साथ बाहर गए हैं। लाल. उस समय तुम क्यो आए थे। पारस० दो-एक नई खबरें जो कल मुझे मिली थी वही आपको सुनाने के लिए आया था। मैंने सोचा था कि अगर जागते हो तो इसी समय दिल का बोझ हलवा कर लू । लाल० वह कौन सी खबर मी? पारस. उस सबर का असल मतलब यही था कि आज रात हरनदन का रडी वे यहां आपको दिखा सकूगा। लाल० (कुछ सोच कर) बात तो ठीक है, मगर मैं सोचता हूँ कि हरन दन को रण्डी के यहा देखने से मेरा मतलब ही क्या निकलेगा? पारम० (कुछ उदास होकर) भला मेरे कहने का आपको विश्वास माहा जायगा और मैंने जा आपकी आशा से बहुत कोशिश नरके और कई भादमिया को बहुत बुध देने का वादा करके इस माम वा बदाबस्त दिया है वह लाल० (लापरवाही वे ढग पर) खर दने लेने की कोई बात नहीं है उन लोगो को जिनसे तुमने वादा किया है, जो कुछ कहोगे यदि उचित होगा तो दे दिया जायगा और जब हम लोग उनसे काम ही न लगे या हरनदन को रण्डी पे पर देखने ही न जायगे तो उन्हें कुछ देने की भी १ यह बात सालसिंह ने बिलकूल कही।