पृष्ठ:कामना.djvu/१०८

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अंक ३, दृश्य २
 

विनोद-हाँ, यह तो अत्यंत खेद की बात है। परंतु कोई चिंता नहीं। चलो।

(दोनो जाते हैं)

लीला-रानी।

कामना-लीला।

लीला-यह सब क्या हो रहा है?

कामना-ऐश्वर्य और सभ्यता के परिणाम।

लीला-तुम रानी हो, इसको रोको।

कामना-मेरा स्वर्ण-पट्ट देखकर प्रथम तुम्हीं को इसकी चाह हुई, आकांक्षा हुई। अब क्या, देश में धनवान और निर्द्धन, शासकों का तीव्र तेज, दीनों की विनम्र दयनीय दासता, सैनिक-बल का प्रचंड प्रताप, किसानों की भारवाही पशु की-सी पराधीनता, ऊँच और नीच, अभिनात और बर्बर, सैनिक और किसान, शिल्पी और व्यापारी, और इन सभी के ऊपर सभ्य व्यवस्थापक-सब कुछ तो है। नये-नये संदेश, नये-नये उद्देश, नई-नई संस्थाओं का प्रचार, कुछ सोना और मदिरा के बल से हो रहा है। हम जागते में स्वप्न देख रहे है।

लीला-ओह। (जाती है)

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