यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
अंक ३, दृश्य ७
विवेक-आज न्यायालय मे विचार होनेवाला है, और तुम्हारे देश के जो दो बंदी हुए हैं, उन्हे दंड मिलेगा। हम लोगो में से बहुतेरे उसके विरुद्ध हैं। यदि तुम लोग भी हमारी सहायता करो, तो इस भीषण आतंक से सबकी रक्षा हो।
युवक-हम लोग ठीक समय पर पहुँचेंगे। परंतु वहाँ तक जाने कैसे पावेंगे?
विवेक-हमारी सेवा से जितने आहत अच्छे हो चुके है, उन्ही लोगो के दल के साथ। और, इस अच्छे कर्म के लिए बहुत सहायक मिलेंगे।
युवक-अच्छा, तो हम जाते हैं। विवेक-तुम्हारा कल्याण हो ।
(युवक और उसके साथी जाते हैं, दूसरी ओर से वही बालिका दौडती हुई आती है। पीछे दो उन्मत्त मद्यप है)
बालिका–दोहाई है, बचाओ। बचाओ।
मद्यप सैनिक-सुंदरी, इतनी दौड़-धूप करने पर तो प्रेम का आनंद नहीं रहता। माना कि यह भी एक भाव है, पर वह मुझे रुचिकर नहीं। सुन तो लो-
(पकड़ता है)
१२७