पृष्ठ:कामना.djvu/१३३

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कामना
 

बालिका–अरे, तुम क्या मनुष्यता को भी मदिरा के साथ घोलकर पी गये हो।

सैनिक-मदिरा के नाम से वही तो पीता हूँ।

विवेक-(आगे बढ़कर) क्यो, तुम वीर सैनिक हो न?

सैनिक-क्या इसमे भी संदेह है?

विवेक-डरपोक, कायर! छोड़ दो, नही तो दिखा दूँगा कि इन सूखी हड्डियों में कितना बल है।

सैनिक-जा पागल! तू क्यों मरना चाहता है?

विवेक-दूसरे की रक्षा मे, पाप का विरोध और परोपकार करने में प्राण तक दे देने का साहस किस भाग्यवान् को होता है? नीच। आ, देखूँ तो।

(सैनिक तलवार से प्रहार करने को उद्यत होता है। विवेक सामने तन कर खड़ा होता और उसकी कलाई पकड़ लेता है)

सैनिक-अब छोड़ दो, हाथ टूटता है।

विवेक-(छोड़कर) इसी बल पर इतना अभिमान! जा, अब सीधा हो जा। देश का कलंक धोने मे हाथ बँटा, कल परीक्षा होगी।

सैनिक-पिता! क्षमा करो, जो आज्ञा होगी,

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