२—सावित्री
लेखिका—स्वर्गीया शिवकुमारी देवी
'प्रताप' लिखता है—छपाई-सफाई अच्छी है। पुस्तक एक बालिका—जो हिन्दी के दुर्भाग्य से अल्पायु में ही स्वर्गवासिनी हो गई—की लिखी हुई है। तथापि भाषा इतनी अच्छी है कि सहसा यह सोचकर आश्चर्य होता है कि एक बालिका इतनी अच्छी भाषा लिख सकती है। 'सम्मेलन-पत्रिका' लिखती है—पौराणिक कथानक के आधार पर इसकी रचना लेखिका ने अच्छे ढंग से की है। नवयुवतियों को इसका अध्ययन कर पतिव्रत धर्म की शिक्षा ग्रहण कर लाभ उठाना चाहिये।
नीली रोशनाई में, लाल बोर्डर के साथ, बड़ी सुन्दरता से शुद्ध छपी है। फिर भी मूल्य केवल ।)
३—अहिल्याबाई
लेखक—पं॰ जटाधर प्रसाद शर्मा 'विकल'
भारतीय नारियाँ केवल सतीत्व और वीरता ही के लिए प्रसिद्ध नहीं हैं, किन्तु समय पड़ने पर उत्कृष्ट कोटि की शासिका का काम करके भी प्रसिद्धि प्राप्त कर सकती है—इसका नमूना देखना हो तो, इस पुस्तक को पढ़िये। अहिल्या सतीत्व की साक्षात् मूर्ति और धर्म की पुण्य प्रतिमा थी। वीरता और चतुरता भी उसमें प्रचुर परिमाण में पाई जाती थी। ईश्वर-भक्तिपरायणा, प्रजावत्सला इस रमणी-शिरोमणि का चरित्र दर्शनीय है। यह भी नीली रोशनाई से बोर्डर के बीच में सुन्दरता से छपी है। भाषा सरल-सुबोध। शैली सरस और मनोरंजक। सर्वांग सुन्दर होने पर भी मूल्य केवल ।)
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