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अंक १, दृश्य ३
कामना-गाती क्यों नहीं हैं, पर तुम्हे हमारे गाने अच्छे लगेंगे?
विलास-क्यों नहीं, सुनूं तो।
(कामना गाती है और विलास बाँसुरी बजाता है)
सघन वन-वल्लरियों के नीचे
उषा और सन्ध्या-किरनों ने तार बीन के खींचे हरे हुए वे गान जिन्हे मैंने आँसू से सीचे स्फुट हो उठी मूक कविता फिर कितनों ने दृग मींचे स्मृति-सागर मे पलक-चुलुक से बनता नही उलीचे मानस-तरी भरी करुना-जल होती ऊपर नीचे
विलास-कामना ! कामना ! तुम लोगों का ऐसा गान है । इसे गान कहते है। मैने तो ऐसा गान कभी नहीं सुना !
कोमना- (आश्चर्य ) क्या ऐसा गान कहीं नहीं होता?
विलास-इस लोक में तो नहीं।
कामना-तब तो बड़ी अच्छी बात हुई।
क्लिास-क्यों ?
कामना-मैं नित्य सुनाऊँगी।
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