सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कामना.djvu/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
कामना
 

कामना-क्यो नहीं।

विलास-कितनी देर मे सब एकत्र होगे ?

कामना-आते ही होगे । मुझे तो दिखलाओ, तुमने क्या बनाया है, और कैसे बनाया ?

विलास-देखो, परंतु किसी से कहना मत ।

(कामना आश्चर्य से देखती है। पर्दा हटाकर शराब की भट्टी और सुनार की धौंकनी दिखलाता है। गलाया हुआ बहुत-सा. सोना रक्खा है । मंजूषा में से एक कंकण निकालकर कामना को दिखाता है)

लीला-(सहसा प्रवेश करके) सब लोग आ रहे है।

(विलास सब बंद कर लेता है, लीला की ओर क्रोध से देखता है। लीला संकुचित हो जाती है)

विलास-जब कह दिया गया कि तुम्हें भी मिलेगा, तब इतनी उतावली क्यों है ?

(विनोद भी आ जाता है)

कामना-विनोद और लीला हमारे अभिन्न है प्रिय विलास ।

विलास-ईश्वर का यह ऐश्वर्य है, उसका अंग है। जब उसकी इच्छा होगी, तभी मिलेगा। जल्दी

का काम नहीं । विनोद ! तुम्हें भी इसकी-

३८