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कामना
(विलास एक छोटा-सा हार निकालकर लीला को पहनाता है। कामना क्षोभ से देखती है। विलास पर्दा खीचकर खड़ा हुआ मुसकिराता है। सब लोग आ जाते हैं। कामना सबका स्वागत करती है। युवक और युवतियो का झुंड बैठता है)
विलास-आज आप लोग मेरे अतिथि है, यदि कोई अपराध हो तो क्षमा कीजियेगा ।
एक युवक-अतिथि क्या ?
विलास-यही कि मेरे घर पधारे है।
एक युवती-हम लोग तो इसे अपना ही घर समझते है।
विनोद -वास्तव मे तो घर विलासनी का है।
विलास-ऐसा कहना तो शिष्टाचार-मात्र है। अच्छे लोग तो ऐसा कहते ही है।
युवक-क्या इस घर के आप ही सब कुछ हैं ? हम लोग कुछ नहीं?
कामना-आप लोग जब आ गये है, तब तक आप लोग भी है, परंतु विलासजी की आज्ञानुसार।
विलास-(हँसकर) हमारे देश मे इसको
शिष्टाचार कहते है। यद्यपि आप लोगो का इस
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