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पृष्ठ:कामना.djvu/६८

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अंक २,दृश्य ४
 


मेघखंड छाया किये हो। कैसा मोहन रूप है (प्रगट) क्यो विलास । यहाँ क्या कर रहे हो ?

विलास—विचार कर रहा हूँ।

कामना—क्या ?

विलास—जिस इच्छा के अंकुर का रोपण करता हूँ, हमारी महत्त्वाकांक्षा उन्ही दो पत्तो को सुरक्षित रखने के लिए-सूर्य के ताप से बचाने के के लिए—अनन्त आकाश को मेघो से ढक लेती है।

कामना—तब तो बड़ी अच्छी बात है ?

विलास—परन्तु सन्देह है कि कही मधु-वर्षा के बदले करका-पात न हो।

कामना—मीठी भावनाये करो । प्रिय विलास, मधुर कल्पनाये करो । सन्देह क्यो ?

विलास—सामने देखो—वह नदी का यौवन, जल-राशि का वैभव, परन्तु उसमे नीची-ऊंची लहरें हैं।

कामना—नही देखती हो, सीपी अपने चम- कीले दांतो से हँस रही है । चलो, उपासना- गृह चलें।

विलास—तुम चलो, मै अभी आता हूँ ।

(कामना जाती है)

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