पृष्ठ:कामना.djvu/७८

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अंक २, दृश्य ६
 


ध्वनि सुनाई पड़ी। मैं आगे न जा सका, लौट आया।

लालसा-(बड़ी रुखाई से देखती हुई) आप ! आप कौन है ? हॉ, आप हैं । अच्छा, आ ही गये तो बैठ जाइये।

विलास-सुंदरी ! इतना निष्ठुर विभ्रम | इतनी अंतरात्मा को मसलकर निचोड़ लेने वाली रुखाई ! तभी तुम्हारे सामने हार मानने की इच्छा होती है ।

लालसा-इच्छा होती है, हुआ करे, मै किसी की इच्छा को रोक सकती हूँ।

विलास-परंतु पूरी कर सकती हो ।

लालसा-स्वयं रानी पर जिसका अधिकार है, उसकी कौन-सी अपूर्ण इच्छा होगी ?

विलास-अब मुझी पर मेरा अधिकार नही रहा।

लालसा-देखती हूँ, बहुत-सी बाते भी आपसे सीखी जा सकती हैं

विलास-इसका मुझे गर्व था, परंतु आज जाता रहा । मेरी जीवन-यात्रा मे इसी बात का सुख था कि मुझ पर किसी स्त्री ने विजय नहीं पाई, परंतु वह झूठा गर्व था। आज-

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