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अंक २, दृश्य ६
लीला-नित्य आने-आने करती हूँ, परंतु-
लालसा-परंतु विनोद से छुट्टी नही मिलती।
लीला-विनोद, वह तो एक निष्ठुर हत्यारा हो उठा है। उसको मृगया से अवकाश नहीं ।
लालसा-तब भी तुम्हारी तो चैन से कटती है।
(सकेत करती है)
लीला-चुप, तू भी वही-
लालसा-आह, यह लो-
लीला--मन नहीं लगा, तो तेरे पास चली आई।
लालसा-तो मेरे पास मन लगने की कौन-सी वस्तु है ? अकेली बैठी हुई दिन बिताती हूँ। गाती हूँ, रोती हूँ, और सोती हूँ।
लीला-तेरे आभूषणो की तो द्वीप-भर मे धूम है।
लालसा-परंतु दुर्भाग्य की तो न कहोगी।
लीला-तू तो बात भी लम्बी-चौड़ी करने लगी। अभी-अभी तो देखा, विलास चले जा रहे हैं।
लालसा-और तू कहाँ से आ रही है, वह भी बताना पड़ेगा।
लीला-चुप, देख, रानी आ रही हैं।
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