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पृष्ठ:कामना.djvu/९४

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अंक ३, दृश्य १
 


इसमें आकर बसने लगे है। जैसे मधुमक्खियाँ अपने मधु की रक्षा के लिए मधुचक्र का सृजन करती हैं, वैसे ही धर्म और संस्कृति की इस नगर मे रक्षा होगी। नवीन विचारों का यह केन्द्र होगा। धर्म-प्रचार मे यहाँ से बड़ी सहायता मिलेगी।

दुर्वृत्त-बड़ा सुन्दर भविष्य है। सुन्दर महल, सार्वजनिक भोजनालय, संगीत-गृह और मदिरा-मन्दिर तो है ही; इनमे धर्म-भवनों की भव्यता बड़ा प्रभाव उत्पन्न कर रही है। देहाती अर्ध-सभ्य मनुष्यों को ये विशेष रूप से आकर्षित करते है। इससे उनके मानसिक विकास मे बड़ी सहायता मिलेगी।

क्रूर-यह तो ठीक है। पर यहाँ अधिक-से-अधिक सोने की आवश्यकता होगी। यहाँ व्यय की प्रचुरता नित्य अभाव का सृजन करेगी, और अन्य स्थलों की अच्छी वस्तु यहाँ एकत्र करने के लिए नये उद्योग-धन्धे निकालने होंगे।

दम्भ-स्वर्ण के आश्रय में ही संस्कृति और धर्म बड़ सकते हैं। उपाय जैसे भी हो, उनसे सोना इकट्ठा करो, फिर उनका सदुपयोग करके हम प्रायश्चित्त कर लेगें।

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