पृष्ठ:कामना.djvu/९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
कामना
 

प्रमदा-स्त्रियाँ पुरुषो की दासता मे जकड़ गई हैं, क्योकि उन्हे ही स्वर्ण की अधिक आवश्यकता है। आभूषण उन्ही के लिए है। मैने स्त्रियो की स्वतंत्रता का मन्दिर खोल दिया है। यहाँ वे नवीन वेश-भूषा से अद्भुत लावण्य की सत्ता जमावेगी। पुरुष स्वयं अब उनके अनुगत होगे। मै वैवाहिक जीवन को घृणा की दृष्टि से देखती हूँ। उन्हे धर्म-भवन की देवदासी बनाऊँगी।

दुर्वृत्त-और यहाँ कौन उसे अच्छा समझता है। पर मैंने कुछ दूसरा ही उपाय सोच लिया है।

क्रूर-वह क्या?

दुर्वृत्त-इतने मनुष्यों के एकत्र रहने में सुव्यवस्था की आवश्यकता है। नियमो का प्रचार होना चाहिये। इस लिए इस धर्म-भवन से समय-समय पर व्यवस्थायें निकलेंगी। वे अधिकार उत्पन्न करेंगी, और जब उनमे विवाद उत्पन्न होगा, तो हम लोगो का लाभ ही होगा। नियम न रहने से विशृंखला जो उत्पन्न होगी।

क्रूर-प्रमदा के प्रचार से विलास के परिणाम-स्वरूप रोग भी उत्पन्न होगे। इधर अधिकारों को

९०