कैम्प के द्वार पर पहुँच गये हो। यहाँ आते-आते तुम आधे हो जाओगे।
एक मजदूर—कोई चिन्ता नहीं। मर-मरकर जीने से एक बार मर जाना अच्छा है। मारो, आगे बढ़ो, क्या हिम्मत छोड़ देते हो?
गुरुसेवक—आगे एक कदम भी रखा और गिरे! यह समझ लो कि तुम्हारे आगे मौत खड़ी है।
मजदूर—हम आज मरने के लिए कमर बाँधकर..
अँग्रेजी कैम्प से फिर गोलियों की बाढ़ आयी और कई आदमियों के साथ यह आदमी भी गिर गया, और उसके गिरते ही सारे समूह में खलबली पड़ गयी। अभी तक इन लोगों को न मालूम था कि गोलियाँ किधर से आ रही हैं। समझ रहे थे कि इसी कैम्प से आती होंगी। अब शिकारी लोग बढ़ आये थे और साफ नजर आ रहे थे।
एक चमार बोला—साहब लोग गोली चला रहे हैं।
दूसरा—गोरों की फौज है, फौज।
तीसरा—चलो, उन्हीं सबों को पथें? मुर्गी के अंडे खा-खाकर खूब मोटाये हुए हैं।
चौथा—यही सब तो राजाओँ को बिगाड़े हुए हैं। दो शिकार भी मिल गये, तो मेहनत सफल हो जायगी।
लेकिन कायरों की हिम्मत टूटने लगी थी। लोग चुपके चुपके दायें बायें से सरकने लगे थे। यहाँ प्राण देने से बाजार में लूट मचाना कहीं आसान था। देखते देखते पीछे के सभी आदमी खिसक गये। केवल आगे के लोग खड़े रह गये थे। उन्हें क्या खबर थी कि पीछे क्या हो रहा है। वे अँगरेजी कैम्प की तरफ मुड़े और एक ही हल्ले में अँगरेजी कैम्प के फाटक तक आ पहुँचे। अब तो यहाँ भी भगदड़ पड़ी। एक ओर नरेशों के कैम्प से मोटरें निकल-निकलकर पीछे की ओर से दौड़ती चली आ रही थीं। इधर अँगरेजी कैम्प से मोटरों का निलकना शुरू हुआ। एक क्षण में सारी लेडियाँ गायब हो गयीं। मर्दों में भी आधे से ज्यादा निकल भागे। केवल वही लोग रह गये, जो मोरचे पर खड़े थे और जिनके लिए भागना मौत के मुँह में जाना था; मगर उन सबों के हाथों में मार्टिन और मॉजर के यन्त्र थे। इधर ईश्वर की दी हुई लाठियाँ थी, या जमीन से चुने हुए पत्थर। यद्यपि हड़तालियों का दल एक ही हल्ले में इस फाटक तक पहुँच गया; पर यहाँ तक पहुँचते पहुँचते कोई बीस आदमी गिर पड़े। अगर इस वक्त ५० गज के अन्तर पर भी इतने आदमी गिरे होते, तो शायद सबके पर उखड़ जाते, लेकिन यह विश्वास, कि अब मार लिया है, उनके हौसले बढ़ाये हुए था। विजय के सम्मुख पहुँचकर कायर भी वीर हो जाते हैं। घर के समीप पहुँचकर थके हुए पथिक के पैरों में भी पर लग जाते हैं।
इन मनुष्यों के मुख पर इस समय हिंसा झलक रही थी। चेहरे विकृत हो गये थे। जिसने इन्हें इस दशा में न देखा हो यह कल्पना भी नहीं कर सकता कि ये वही दीनता के पुतले हैं, जिन्हें एक काठ की पुतली भी चाहे जो नाच नचा सकती थी। अँगरेज