नेम ताहन के पास पहुँचकर रोने लगा। इस फन में तुम जानो उस्ताद है। सरकारी नुलाजिमत और वह भी तहसीलटारी सब कुछ सिखा देती है। अगरेजो को तो तुम जानते ही हो, मेमों के गुलाम होते हैं । मेम ने जाकर हजरत को डॉटा-क्यों तहमोल-दार साहब को दिक कर रहे हो ? अभी इनके लडके को छोड़ दो, नहीं तो घर से निकल जानो। यह डाँट पड़ी, तो हजरत के होश ठिकाने हुए बोले-वेन, तहसीलदार साहब हम अापका बहुत इजन करता है। आपको हम नाउम्मेद नहीं करना चाहता, लेकिन जब तक श्रापका लड़का इस बात का कौल न करे कि वह फिर कभी गोलमाल न करेगा तब तक हम उसे नहीं छोड़ सकता । हम अभी जेलर को लिखता है कि उससे पूछो, राजी है । मैंने कहा- हुजूर, मैं खुद जाता हूँ और उसे हुजूर की खिदमत में लापर हाजिर करता हूँ। या वहाँ न चलना चाहो, तो यहीं एक हलफनामा लिख दो। देर करने से क्या फायदा । तुम्हारी अम्मा रो-रोकर जान दे रही है।
चक्रधर ने सिर नीचा करके कहा-अभी तो मैने कुछ निश्चय नहीं किया। सोच-कर जवाब दूंगा । आप नाहक इतने हेगन हुए।
वज्रघर-कैतो बातें करते हो, वेटा ? यहाँ नाक कटी जा रही है, घर से निकलना मुश्किल हो गया है और तुम कहते हो--सोचकर जवाब दूंगा। इसमे सोचने की बात हो क्या है ? इस तहसीलदारी को लाज तो रखनी है। की तो थोड़े ही दिन, लेकिन भाज तक लोग याद करते है और हमेशा याद करेंगे। कोई हाकिम इलाके में पाया नहीं कि उससे मिलने दोड़ा। रसद के ढेर लगा देता था । हाकिमो के नोकर चाकर तक खाते-खाते ऊब जाने थे । जमीदारों की तो मेरे नाम से जान निकल जाती थी। जिम साहम ने मेरो तारीफी चिट्ठियाँ पढ़ीं, तो दग रह गये। इस इज्जत को तो निभाना हो पड़ेगा | चलो; हलफनामा लिख दो। घर मे कल से याग नहीं चली।
चक्रधरमेरी यात्मा किसी तरह अपने पॉव में वेडियाँ डालने पर राजी नहीं होती।
वज्रधर-मौका देखकर सब कुछ किया जाता है, वेटा | दुनिया में कोई किनी का नहीं होता । यही राजा साहब पहले तुमसे कितनी मुहम्मत से पेग आते थे। अब अपने सिर पर पड़ी, तो कैसे सारी बला तुम्हारे सिर ठेलकर निकल गये। दीवान माहब का लड़का गुरुसेवक पहले जाति के पीछे कैसा लट्ठ लिये फिरता था। कल डिप्टी कलक्टरी में नामजद हो गया । कहाँ तो हममे हमदर्दी करता था, कहाँ अब विद्रोहियों के खिलाफ बलमा करने के लिए दौड़-धूप कर रहा है । जब सारी दुनिया अपना मतलब निकालने को धुन में है, तो तुम्हों दुनिया को फिक्र में क्यों अपने को बरबाद करो ? दुनिया जाय जहन्नुम में । हमें अपने काम से काम है, या दुनिया के झगहों से ?
चक्रघर-नगर और लोग अपने मतलब के बन्दे हो जायँ और स्वार्थ के लिए अपने सिद्धान्नों से मुँह मोड़ बैठे, तो कोई वजह नहीं कि मैं भी उन्हीं को नकल कले। ने ऐसे लोगों को नाना आदर्श नहीं बना सकता। मेरे श्रादर्श इनने बहुत ऊँचे हैं।
वघर-घस, तुम्हारी इसी जिद पर मुझे गुस्सा याता है।नने भी अपनी जवानी