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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/११८

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कायाकल्प]
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शेखी! इसी पर इतनी दून की लेते थे।

चक्रधर पर घड़ों पानी पड़ गया। मन की अस्थिरता पर लज्जित हो गये। जातिसेवकों से सभी दृढ़ता की आशा रखते हैं, सभी उसे आदर्श पर बलिदान होते देखना चाहते हैं। जातीयता के क्षेत्र में आते ही उसके गुणों की परीक्षा अत्यन्त कठोर नियमो से होने लगती है और दोषो की सूक्ष्म नियमों से। परले सिरे का कुचरित्र मनुष्य भी साधुवेश रखनेवालों से ऊँचे आदर्श पर चलने की आशा रखता है, और उन्हें आदर्श से गिरते देखकर उनका तिरस्कार करने में संकोच नहीं करता। जेलर के कटाक्ष ने चक्रधर की झपकी हुई आँखें खोल दीं। तुरन्त उत्तर दिया—मै जरा वह प्रतिज्ञा-पत्र देखना चाहता हूँ।

तहसीलदार साहब ने जेलर की मेज से वह कागज उठा लिया और चक्रधर को दिखाते हुए बोले—बेटा, इसमें कुछ नहीं है। जो कुछ मैं कह चुका हूँ, वही बातें जरा कानूनी ढंग से लिखी गयी हैं।

चक्रधर ने कागज को सरसरी तौर से देखकर कहा—इसमें तो मेरे लिए कोई जगह ही नहीं रही। घर पर कैदी बना रहूँगा। मेरा ऐसा खयाल न था। अपने हाथों अपने पाँव में बेड़ियाँ न डालूँगा। जब कैद हो होना है, तो कैदखाना क्या बुरा है? अब या तो अदालत से बरी होकर आऊँगा, या सजा के दिन काटकर।

यह कहकर चक्रधर अपनी कोठरी में चले आये और एकान्त में खूब रोये। आँसू उमड़ रहे थे; पर जेलर के सामने कैसे रोते?

एक सप्ताह के बाद मिस्टर जिम के इजलास में मुकदमा चलने लगा। तहसीलदार साहब ने न कोई वकील खड़ा किया, न अदालत में आये। यहाँ तो गवाहों के बयान होते थे, और वह सारे दिन जिम के बंगले पर बैठे रहते थे। साहब बिगड़ते थे, धमकाते थे; पर वह उठने का नाम न लेते। जिम जब बँगले से निकलते, तो द्वार पर मुंशीजी खड़े नजर आते थे। कचहरी से आते, तो भी उन्हें वहीं खड़ा पाते। मारे क्रोध के लाल हो जाते। दो-एक बार घूँसा भी ताना, लेकिन मुंशीजी को सिर नीचा किये देख दया आ गयी। अक्सर यह साहब के दोनों बच्चो को खिलाया करते, कन्धे पर लेकर दौड़ते, मिठाइयाँ ला लाकर खिलाते और मेम साहब को हँसानेवाले लतीफे सुनाते।

आखिर एक दिन साहब ने पूछा—तुम मुझसे क्या चाहता है।

वज्रधर ने अपनी पगड़ी उतारकर साहब के पैरों पर रख दी और हाथ जोड़कर बोले—हुजूर सब जानते हैं, मैं क्या अर्ज करूँ। सरकार की खिदमत में सारी उम्र कट गयी। मेरे देवता तो, ईश्वर तो, जो कुछ है, आप ही हैं। आपके सिवा मैं और किसके द्वार पर जाऊँ? किसके सामने रोऊँ? इन पके बालो पर तरस खाइए। मर जाऊँगा हुजूर, इतना बड़ा सदमा उठाने की ताकत अब नहीं रही!

जिम—हम छोड़ नहीं सकता, किसी तरह नहीं।