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[ कायाकल्प
 


चित्त बहुत प्रसन्न हुआ। इस वैमनस्य को मिटाने के लिए आपने जो उपाय बताये हैं, वे वहुत ही विचारपूर्ण हैं।

इस स्नेह-मृदुल आलिंगन और सहृदयता-पूर्ण आलोचना ने चक्रधर को मोहित कर लिया। वह कुछ जवाब देना ही चाहते थे कि मुशी बज्रधर बोल उठे-आज बहुत देर लगा दी। राजा साहब से कुछ बातचीत होने लगी क्या? (यशोदानन्दन से) राजा साहब की इनके ऊपर बड़ी कृपा है। बिलकुल लड़कों की तरह मानते हैं। इनकी बातें सुनने से उनका जी ही नहीं भरता। (नाई से) देख, चिलम बदल दे और जाकर झिनकू से कह दे, सितार वितार लेंकर थोड़ी देर के लिए यहाँ आ जाय। इधर ही से गणेश के घर जाकर कहना कि तहसीलदार साहब ने एक हाँड़ी अच्छा दही माँगा है। कह देना, दही खराव हुआ, तो दाम न मिलेंगे।

यह हुक्म देकर मुशीजी घर मे चले गये। उधर की फ्रिक थी, पर मेहमान को छोड़कर न जा सकते थे। आज उनका ठाट बाट देखते ही बनता था। अपना अल्पकालीन तहसीलदारी के समय का आलपाके का चोंगा निकाला था उसी जमाने की मदील भी सिर पर थी। आँखों में सुरमा भी था, बालों में तेल भी, मानो उन्हीं का व्याह होनेवाला है। चक्रधर शरमा रहे थे कि यह महाशय इनके वेश पर दिल में क्या कहते होंगे। राजा साहब की बात सुनकर तो वह गड़-से गये।

मुशीजी चले गये, तो यशोदानन्दन बोले— अब आपका क्या काम करने का इरादा है?

चक्रधर— अभी तो कुछ निश्चय नहीं किया है, हाँ, यह इरादा है कि कुछ दिनों आजाद रहकर सेवा कार्य करूँँ।

यशोदा— इससे बढकर क्या हो सकता है। आप जितने उत्साह से समिति को चला रहे हैं, उसकी तारीफ नहीं की जा सकती। आप-जैसे उत्साही युवकों का ऊँचे आदर्शों के साथ सेवा क्षेत्र में आना जाति के लिए सौभाग्य की बात है। आपके इन्हीं गुणों ने मुझे आपकी ओर खींचा है। यह तो आपको मालूम ही होगा कि मैं किस इरादे से आया हूँ। अगर मुझे धन या जायदाद की परवा होती, तो यहाँ न आता! मेरी दृष्टि में चरित्र का जो मूल्य है, वह और किसी वस्तु का नहीं।

चक्रधर ने ऑखें नीची करके कहा— लेकिन मैं तो अभी गृहस्थी के बन्धन में नहीं पड़ना चाहता। मेरा विचार है कि गृहस्थी में फँसकर कोई तन मन से सेवा कार्य नहीं कर सकता।

यशोदा— ऐसी बात तो नहीं। इस वक्त भी जितने आदमी सेवा कार्य कर रहे हैं, वे प्राय सभी बाल-बच्चोंवाले आदमी हैं।

चक्रधर— इसी से तो सेवा कार्य इतना शिथिल है!

यशोदा— मैं समझता हूँ कि यदि स्त्री और पुरुष के विचार और आदर्श एक से हों, तो स्त्री पुरुष के कामो में वाधक होने के बदले सहायक हो सकती है। मेरी पुत्री