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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/१३४

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कायाकल्प]
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कारन इम लोग सेंत-मेंत में पिटे कि नहीं?

धन्नासिंह—सीधा नहीं, उनसे मिला हुआ है। भगत सभी दिल के मैले होते हैं। कितनों को देख चुका।

तीसरा कैदी—तुम्हारी ऐसी-तैसी, तुम्हें फाँसी दिला कर इन्हें राज ही तो मिल जायगा। छोटा मुँह, बड़ी बात!

चक्रधर ने आगे बढ़कर कहा—दारोगाजी, आखिर आप क्या चाहते हैं? इन गरीबों को क्यों घेर रखा है?

दारोगा ने सिपाहियों की आड़ से कहा—यही उन सब बदमाशों का सरगना है। खुदा जाने किस हिकमत से उन सबों को मिलाये हुए है। इसे गिरफ्तार कर लो। बाकी जितने हैं, उन्हें खूब मारो, मारते-मारते हलवा निकाल लो सुअर के बच्चों का। इनकी इतनी हिम्मत कि मेरे साथ गुस्ताखी करें।

चक्रधर—आपको कैदियों को मारने का कोई मजाज नहीं है।

धन्नासिंह—जबान सँभाल के दारोगाजी!

दारोगा—मारो इन सूअरों को।

सिपाही कैदियों पर टूट पड़े और उन्हें बन्दूकों के कुन्दों से मारना शुरू किया। चक्रधर ने देखा कि मामला संगीन हुआ चाहता है, तो बाले—दारोगाजी, खुदा के वास्ते यह गजब न कीजिए।

कैदियों में खलबली पड़ गयी। कुछ इधर-उधर से फावड़े, कुदालें और पत्थर ला लाकर लड़ने पर तैयार हो गये। मौका नाजुक था। चक्रधर ने बड़ी दीनता से कहा—मैं आपको फिर समझाता हूँ।

दारोगा—चुप रह सूअर का बच्चा!

इतना सुनना था कि चक्रधर बाज की तरह लपककर दारोगाजी पर झपटे। कैदियों पर कुन्दों की मार पड़नी शुरू हो गयी थी। चक्रधर को बढ़ते देखकर उन सबों ने पत्थरों की वर्षा करनी शुरू की। भीषण संग्राम होने लगा।

एकाएक चक्रधर ठिठक गये। ध्यान आ गया, स्थिति और भयंकर हो जायगी, अभी सिपाही बन्दूक चलाना शुरू कर देंगे, लाशों के ढेर लग जायँगे। अगर हिंसक भावों को दबाने का कोई मौका हो सकता है, तो वह यही मौका है। ललकार कर बोले—पत्थर न फेंको, पत्थर न फेंको! सिपाहियों के हाथों से बन्दूक छीन लो।

सिपाहियों ने संगीनें चढ़ानी चाहीं; लेकिन उन्हें इसका मौका न मिल सका। एकएक सिपाही पर दस दस कैदी टूट पड़े और दम के दम में उनकी बन्दूक छीन ली। सिपाहियों ने रोब के बल पर आक्रमण किया था। उन्हें विश्वास था कि कुन्दों की मार पड़ते ही कैदी भाग जायँगे। अब उन्हें मालूम हुआ कि हम धोखे में थे। फिर वे एक साथ में नहीं, उधर-उधर बिखरे खड़े थे। इससे उनकी शक्ति और भी कम हो गयी थी। उन पर आगे पीछे, दायें-बायें चारों तरफ से चोट पड़ सकती थी। संगीनें चढ़ाकर भी