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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/१६२

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१७६
[कायाकल्प
 

नहीं है। आपकी माताजी अलबत्ता रोया करती हैं! छोटी रानी साहबा की आपके घर-वालों पर विशेष कृपादृष्टि है।

चक्रधर ने विस्मित होकर पूछा––छोटी रानी साहबा कौन?

अहल्या––रानी मनोरमा, जिनसे अभी थोड़े हो दिन हुए, राजा साहब का विवाह हुआ है।

चक्रधर––तो मनोरमा का विवाह राजा साहब से हो गया?

अहल्या––यही तो बाबूजी कहते थे।

चक्रधर––तुम्हें खूब याद है, भूल तो नहीं रही हो?

अहल्या-खूब याद है, इतनी जल्द भूल जाऊँगी!

चक्रधर––यह तो बड़ी दिल्लगी हुई, मनोरमा का विवाह विशालसिंह के साथ? मुझे तो अब भी विश्वास नहीं पाता। बाबूजी ने नाम बताने में गलती को होगी।

अहल्या––बाबूजी को स्वयं आश्चर्य हो रहा था। काशी में भी लोगों को बड़ा आश्चर्य है। मनोरमा ने अपनी खुशी से विवाह किया है, कोई दबाव न था। मनोरमा किसी से दबनेवाली है ही नहीं। सुनती हूँ, राजा साहब बिलकुल उनकी मुट्ठी में हैं। जो कुछ वह करती हैं, वही होता है। राजा साहब तो काठ के पुतले बने हुए हैं। बाबूजी चन्दा माँगने गये थे, तो रानीजी ही ने पाँच हजार दिये। बहुत प्रसन्न मालूम होती थीं।

सहसा लेडी ने कहा––वक्त पूरा हो गया। बार्डर, इन्हें अन्दर ले जाओ।

चक्रधर क्षण-भर भी और न ठहरे। अहल्या को तृष्णापूर्ण नेत्रों से देखते हुए चले गये। अहल्या ने सजल नेत्रों से उन्हें प्रणाम किया और उनके जाते ही फूट-फूटकर रोने लगी।


२२

फागुन का महीना आया, ढोल-मजीरे की आवाजें कानों में आने लगीं। कहीं रामायण को मंडलियाँ बनीं, कहीं फाग और चौताल का बाजार गर्म हुआ। पेड़ों पर कोयल कूकी, घरों में महिलाएँ कूकने लगीं। सारा ससार मस्त है, कोई राग में, कोई साग में। मुन्शी वज्रघर को संगीत-सभा भी सजग हुई। यों तो कभी-कभी बारहों मास बैठक होती थी, पर फागुन आते ही बिला नागा मृदङ्ग पर थाप पड़ने लगी। उदार आदमी थे फिक्र को कमी पास न आने देते। इस विषय में वह बड़े बड़े दार्शिनकों से भी दो कदम आगे बढ़े हुए थे। अपने शरीर को वह कभी कष्ट न देते थे। कवि के आदेशानुसार बिगड़ी को बिसार देते थे, हाँ आगे की सुधि न लेते थे। लड़का जेल में है, घर में स्त्री रोती रोती अन्धी हुई नाती है, सयानी लड़की घर में बैठी हुई है, लेकिन मुन्शीजी को कोई गम नहीं। पहले २५) में गुजर करते थे, अब ७५) भी पूरे नहीं पड़ते। जिससे मिलते हैं हँसकर, सबकी मदद करने को तैयार, मानो उनके मारे अब कोई प्राणी रोगी, दुखी, दरिद्र न रहने पायेगा, मानो वह ईश्वर के दरबार से लोगों के कष्ट दूर करने का ठीका लेकर आये हैं। वादे सबसे करते हैं, किसी ने झुककर सलाम किया और प्रसन्न हो