लौंगी-इनके रुपए दे क्यों नहीं देते ? वेचारे गरीब आदमी हैं; सकोच के मारे नहीं मांगते, कई महीने तो चढ गये ?
ठाकुर-यह भी तुम्हारी मुर्खता थी जिसकी बदौलत मुझे यह तावान देना पड़ता है। कहता था कि कोई ईसाइने रख लो, दो-चार रुपये में काम चल जायगा। तुमने कहा-नहीं, कोई लायक आदमी होना चाहिए। इनके लायक होने मे शक नहीं; पर यह तो बुरा मालूम होता है कि जब देखो रुपए के लिए सिर पर सवार । अभी कल कह दिया कि घबराइए नही, दस-पाँच दिनों मे मिल जायेंगे। तब तक फिर भूत की तरह सवार हो गये।
लौंगो-कोई ऐसी ही जरूरत या पढ़ी होगी, तभी आये होंगे । १२०) हुए न ? मैं लाये देती हूँ।
ठाकुर-हॉ, सन्दूक खोल कर लाना तो कोई कठिन काम नहो । अखर तो उने होती है, जिसे कुआँ खोदना पड़ता है।
लोगी-वही कुऑ तो उन्होने भी खोदा है । तुम्हें चार महीने तक कुछ न मिले, तो क्या हाल होगा, साचो। मुझे तो वेचारे पर दया पाती है।
कह कहकर लौंगी गयी ओर रुपये लाकर ठाकुर साहब से बोली-लो, दे आयो । सुन लेना, शायद कुछ कहना भी चाहते हों।
ठाकुर-लायी भी तो रुपये, नोट न थे क्या ?
लौंगी-जैसे नोट वैसे पर क्या इसमे भी कुछ भेद है?
ठाकुर-अब तुमसे क्या कहूँ। अच्छा, रख दो, जाता हूँ। पानी तो नहीं वरस रहा है कि भींग रहे होगे।
ठाकुर साहब ने झंझलाकर रुपए उठा लिये पोर बाहर चले; लेकिन रास्ते में.क्रोध शान्त हो गया। चक्रधर के पास पहुंचे, तो विनय के देवता बने हुए थे।
चक्रधर-पापको कष्ट देने..
ठाकुर-नही-नहीं, मुझे कई कष्ट नहीं हुआ। नेने आपसे दस-पॉच दिन में देने का वादा किया था। मेरे पास रुपए न थे, पर स्त्रियों को तो आप जानते हैं;कितनी चतुर होती हैं । घर में सए निकल पाए । यह लीजिए।
चक्रधर-मै इस वक्त एक दूसरे हो काम से पाया हूँ। मुझे एक काम ते अागरे जाना है । शायद दो-तीन दिन लगेगे। इसके लिए क्षमा चाहता हूँ।
ठाकुर-हॉ हाँ, शौक से जाइए, मुझने पूछने की जरूरत न थी।
ठाकुर साहब अन्दर चले गये, तो मनोरमा ने पूछा-आप आगरे क्या करने ला रहे हैं?
चक्रधर-एक जरूरत से ज्ञाता हूँ।
मनोरमा-कोई बीमार है क्या ?
चक्रधर-नहीं, बीमार कोई नहीं है ।