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[कायाकल्प
 

मनोरमा- फिर क्या काम है, बताते क्यों नहीं ? जब तक न तलाइएगा, में जाने न दूंगी।

चक्रधर-लौटवर बता दूंगा।

मनोरमा-जी नहीं, मै यह नहीं मानती, अभी बतलाइए।

चक्रधर-एक मित्र मे मिलने जाता हूँ।

मनोरमा-आप मुस्करा रहे हैं ! में समझ गयी, नौकरी की तलाश में जाते हैं।

चक्रधर नहीं मनोरमा, यह बात नहीं है। मेरी नौकरी करने की इच्छा नहीं है।

मनोरमा-तो क्या आप हमेशा इसी तरह देहातो मे घुमा करेंगे ?

चक्रधर-विचार तो ऐसा ही है, फिर जैसी ईश्वर की इच्छा।

मनोरमा-आप रुपए कहाँ से लायेंगे? उन कामों के लिए भी तो रुपयो की जरूरत होती होगी?

चक्रधर-भिक्षा माँगूंगा । पुण्य कार्य भिक्षा हो पर चलते हैं।

मनोरमा-तो पानकल भी आप भिक्षा मांगते होंगे ?

चक्रधर--हॉ, मॉगता क्यो नहीं । न मागू, तो काम कैसे चले ।

मनोरमा-मुझसे तो अापने कभी नहीं मांगा।

चक्रधर-तुम्हारे ऊपर तो विश्वास है कि जब मॉDगा, तब दे दोगी, इसीलिए कोई विशेष काम पा पड़ने पर मॉगूगा।

मनोरमा-और जो उस वक्त मेरे पास न हुए तो।

चक्रघर- तो फिर कभी मॉगूंगा।

मनोरमा-तो श्राप मुझसे अभी माँग लीजिए, अभी मेरे पास रुपए है, दे दूंगी। फिर आप न जाने किस वक मॉग बैठे ।

यह कहकर मनोरमा अन्दर गयी और क्लवाले १२०) रुपए लाकर चक्रधर के सामने रख दिये।

चक्रधर इस वक्त तो मुझे जरूरत नहीं । फिर कभी ले लूँगा।

मनोरमा-जी नहीं, लेते जाइए। मेरे पास खर्च हो जायेंगे | एक दफे भी बाजार गयी, तो यह गायब हो जायेंगे । इसी डर के मारे मैं बाजार नहीं जाती।

चक्रधर-तुमने ठाकुर साहब से पूछ लिया है ?

मनोरमा उनसे क्यों पूछ् ? गुड़िया लाती हूँ, तो उनसे नहीं पूछती, तो फिर.इसके लिए उनसे क्यों पूछ ?

चक्रधर--तो फिर यो मै न लूँगा । यह स्थिति और ही है। यह ख्याल हो सकता है कि मेने तुमसे रुपए ठग लिये । तुम्ही सोचो, हो सकता है या नहीं।

मनोरमा--अच्छा, आप अमानत समझकर अपने पास रखे रहिए। इतने में सामने से मुश्की घोड़ों की फिटन नाती हुई दिखायी दी। घोड़ों के साजों पर गगा ममुनी काम किया हुआ था। चार सवार भाले उठाये पीछे दौड़ते चले पात थे ।