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कायाकल्प ]
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चक्रघर-कोई रानी मालूम होती है ।

मनोरमा-जगदीशपुर की महारानी है । जब उनके यहाँ जाती हूँ, मुझे एक.गिनी देती हैं । ये आठों गिनियाँ उन्हीं की दी हुई हैं । न जाने क्यों मुझे बहुत.मानती हैं।

चक्रधर-इनको कोठी दुर्गाकुण्ड की तरफ है न ? मैं एक दिन इनके यहाँ भिक्षा माँगने जाऊँगा।

मनोरमा-मैं जगदीशपुर की रानी होती, तो आपको बिना माँगे ही बहुत-सा धन - दे देती।

चक्रधर ने मुस्कराकर कहा-तब भूल जाती।

मनोरमा-जी नहीं, मै कभी न भूलती।

चक्रधर-अच्छा, कभी याद दिलाउँगा। इस वक्त यह रुपए अपने ही पास रहने दो।

मनोरमा - अापको इन्हे लेते सकोच क्यों होता है ? रुपए मेरे हैं, महारानी ने मुझे.दिये हैं । मै इन्हें पानी में डाल सकती हूँ, किसीको मुझे रोकने का क्या अधिकार है । आप न लेंगे तो मै सच कहती हूँ, याज ही जाकर इन्हें गगा में फेंक पाऊँगी।

चक्रधर ने धर्म-संकट में पड़कर कहा-तुम इतना अाग्रह करती हो, तो मै लिये लेता हूँ, लेकिन इसे अमानत समझगा।

मनोरमा प्रसन्न होकर बोली-हॉ, अमानत ही समझ लीजिए।

चक्रधर-तो मैं नाता हूँ । किताब देखती रहना ।

मनोरमा-अाप अगर मुझसे बिना बताये चले जायेंगे, तो मैं कुछ न पढगी।

चक्रधर-यह तो बड़ी टेढ़ी शर्त है । बतला ही हूँ। अच्छा, हँसना मत । तुम जरा भी मुस्कराई और मैं चला।

मनोरमा-में दोनों हाथों से मुंह बन्द किये लेती है।

चक्रधर ने झंपते हुए कहा- मेरे विवाह की कुछ बातचीत है | मेरी तो इच्छा नहीं है; पर एक महाशय जबरदस्ती खींचे लिये जाते हैं ।

यह कहकर चक्रधर उठ खड़े हुए। मनोरमा भी उनके साथ साथ आयो । जब वह बरामदे से नीचे उतरे, तो प्रणाम किया और तुरत अपने कमरे में लौट प्रायी। उसकी आँखे डबडवायी हुई थीं और बार-चार रुलाई अाती थी, मानो चक्रधर किसी दूर देश जा रहे हो!


सन्ध्या समय जब रेलगाड़ी बनारस से चली, तो यशोदानन्दन ने चक्रधर से पूछा-क्यों भैया, तुम्हारी राय में झूठ बोलना किसी दशा मे क्षम्य है, या नहीं?.

चक्रधर ने विस्मित होकर कहा-मै तो समझता हूँ, नहीं।

यशोदा-किसी भी दशा मे नहीं ?