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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/१९८

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कायाकल्प]
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वह मुसकरा रही थी, पर आँखों में आँसू झलक रहे थे। इन नेत्रों में कितनी विनय थी, कितना नैराश्य, कितनी तृष्णा, कितना तिरस्कार! चक्रधर को उसका जवाब देने को शब्द न मिले? मनोरमा ने सिर झुकाकर फिर कहा—आपको मेरी सुधि ही न रही होगी, सौगात कौन लाता? बहू से बातें करने में दूसरों की सुधि क्यों आती! बहन, आप उतनी दूर क्यों खड़ी हैं? आइए, आइए, आपसे गले तो मिल लूँ। आपसे तो मुझे कोई शिकायत नहीं।

यह कहकर वह अहल्या के पास गयी और दोनों गले मिलीं। मनोरमा ने रूमाल से एक जड़ाऊ कंगन निकालकर अहल्या के हाथ में पहना दिया और छत की ओर ताकने लगी, जैसे एकाएक कोई बात याद आ गयी हो; सहसा उसकी दृष्टि आईने पर जा पड़ी। अहल्या का रूप-चन्द्र अपनी सम्पूर्ण कलाओं के साथ उसमें प्रतिबिम्बित हो रहा था। मनोरमा उसे देखकर अवाक् हो गयी। मालूम हो रहा था, किसी देवता का आशीर्वाद मूर्तिमान होकर आकाश से उतर आया है। उसकी सरल, शान्त, शीतल छवि के सामने उसका विशाल सौन्दर्य ऐसा मालूम होता था, मानो कुटी के सामने कोई भवन खड़ा हो। यह उन्नत भवन इस समय इस शान्ति कुटी के सामने झुक गया। भवन सूना था, कुटी में एक आत्मा शयन कर रही थी।

इतने में अहल्या ने उसे कुरसी पर बिठा दिया और पान-इलायची देते हुए बोली—आपको मेरे कारण बड़ी तकलीफ हुई। यह आपके आराम करने का समय था। मैं जानती कि आप आयेंगी, तो यहाँ किसी दूसरे वक्त...

चक्रधर मौका देखकर बाहर चले गये थे। उनके रहने से दोनों ही को संकोच होता; बल्कि तीनों चुप रहते।

मनोरमा ने क्षुधित नेत्रों से अहल्या को देखकर कहा—नहीं बहन, मुझे जरा भी तकलीफ नहीं हुई। मैं तो यों भी बारह-एक के पहले नहीं सोती। तुमसे मिलने की बहुत दिनों से इच्छा थी। मैंने अपने मन में तुम्हारी जो कल्पना की थी, तुम ठीक वैसी ही निकलीं। तुम ऐसी न होतीं, तो बाबूजी तुमपर रीझते ही क्यों? अहल्या, तुम बड़ी भाग्यवान् हो। तुम्हारी-जैसी भाग्यशाली स्त्रियाँ बहुत कम होंगी। तुम्हारा पति मनुष्यों में रत्न है, सर्वथा निर्दोष एवम् सर्वथा निष्कलंक।

अहल्या पति-प्रशंसा से गर्वोन्नत होकर बोली—आपके लिए कोई सौगात तो नहीं लाये!

मनोरमा—मेरे लिए तुमसे बढ़कर और क्या सौगात लाते। मैं संसार में अकेली थी। तुम्हें पाकर दुकेली हो जाऊँगी। मंगला से मैंने प्रेम नहीं बढ़ाया। कल को वह पराये घर चली जायगी। कौन उसके नाम पर बैठकर रोता। तुम कहीं न जाओगी, तुम्हें सहेली बनाने में कोई खटका नहीं। आज से तुम मेरी सहेली हो। ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है कि हम और तुम चिरकाल तक स्नेह के बन्धन में बँधे रहें।

अहल्या—मैं इसे अपना सौभाग्य समझूँगी। आपके शील स्वभाव फी चर्चा करते उनकी जवान नही थक्ती।