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[कायाकल्प
 


मनोरमा ने उत्सुक होकर पूछा—सच! मेरी चर्चा कभी करते हैं?

अहल्या—बराबर बात बात पर आपका जिक्र करने लगते हैं। मैं नहीं जानती कि आपकी वह कौन-सी आज्ञा है, जिसे वह टाल सकें।

इतने में बाजों की धोंधों-पोंपों सुनायी दी। मुंशीजी बारात जमाये चले आ रहे थे। सामान तो पहले ही से जमा कर रखे थे, जाकर ले आना था। पंशाखे, बाजों की तीन चार चौकियाँ कई सवारी-गाड़ियाँ, दो हाथी, दर्जनों घोड़े, एक सुन्दर सुखपाल, ये सब स्टेशन के सामने आ पहुँचे।

अहल्या के हृदय में आनन्द की तरंगें उठ रही थीं। जिसने जिन बातों को स्वप्न में भी आशा न की थी, वे सब पूरी हुई जाती थीं। कभी उसका स्वागत इस ठाठ से होगा, कभी एक बड़ी रानी उसकी सहेली बनेगी, कभी उसका इतना आदर-सम्मान होगा उसने कल्पना भी न की थी।

मनोरमा ने उसे धीरे-धीरे ले जाकर सुखपाल में बिठा दिया। बारात चली। चक्रधर एक सुरग घोड़े पर सवार थे।

एक क्षण में सन्नाटा हो गया, लेकिन मनोरमा अभी तक अपनी मोटर के पास खड़ी थी, मानो रास्ता भूल गयी हो।


२८

ठाकुर गुरुसेवकसिंह जगदीशपुर के नाजिम हो गये थे। इस इलाके का सारा प्रबन्ध उनके हाथ में था। तीनों पहली रानियाँ वहीं राजभवन में रहती थीं। उनकी देखमाल करते रहना, उनके लिए जरूरी चीजों का प्रबन्ध करना भी नाजिम का काम था। यह कहिए कि मुख्य काम यही था। नजामत तो केवल नाम का पद था। पहिले यह पद न था। राजा साहब ने रानियों को आराम से रखने के लिए इस नये पद की सृष्टि की थी। ठाकुर साहब जगदीशपुर में राजा साहब के प्रतिनिधि स्वरूप थे।

तीनों रानियों में अब वैर विरोध कम होता था। अब हर एक को अख्तियार था जितने नौकर चाहें रखें, जितना चाहें खर्च करें, जितने गहने चाहें बनवायें, जितने धर्मोत्सव चाहें मनायें, फिर कलह होता ही क्यों। यदि राजा साहब किसी एक नारी पर विशेष प्रेम रखते और अन्य रानियों की परवा न करते, तो ईर्ष्यावश लड़ाई होती, पर राजा साहब ने जगदीशपुर में आने की कसम-सी खा ली थी। फिर किस बात पर लड़ाई होती?

ठाकुर साहब ने दीवानखाने में अपना दफ्तर बना लिया था। जब कोई जरूरत होती, तुरन्त रनिवास में पहुँच जाते। रानियाँ उनसे परदा तो करती थीं, पर परदे की ओट से बातचीत कर लेती थीं। रानी वसुमती इस ओट को भी अनावश्यक समझती थीं। कहतीं—जब बातें ही कीं, तो परदा कैसा? ओट क्यों, गुड़ खाय गुलगुले से परहेज! उन्हें अब संसार से विराग-सा हो गया था। सारा समय भगवत्-पूजन और भजन में काटती थीं। हाँ, आभूषणों से अभी उनका जी न भरा था। और अन्य स्त्रियों की