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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/२१

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कायाकल्प ]
 

चक्रधर-मैं तो यही कहूँगा कि किसी दशा में भी नहीं, हालाँकि कुछ लोग परोपकार के लिए असत्य को क्षम्य समझते हैं ।

यशोदा०-मैं भी उन्हीं लोगों मे हूँ। मेरा ख्याल है कि पूरा वृत्तान्त सुनकर शायद आप भी मुझसे सहमत हो जायँ । मेने अहल्या के विषय में आप से झूठी बातें कही है । वह वास्तवमे मेरी लड़की नहीं है । उसके माता-पिता का हमें कुछ भी पता नहीं।

चक्रधर ने बड़ी-बड़ी आँखें करके कहा-तो फिर अापके यहाँ कैसे पायी ।

यशोदा०-विचित्र कथा है। १५ वर्ष हुए, एक बार सूर्यग्रहण लगा था । मैं उन दिनों कालेज में था। हमारी एक सेवा समिति थी। हम लोग उसी म्नान के अवसर पर यात्रियों की सेवा करने प्रयाग याये थे। तुम तो उस वक्त बहुत छोटे-मे रहे होगे । इतना बड़ा मेला फिर नही लगा । वही हमें यह लड़की एक नाली मे पड़ी

रोती मिली । । न जाने उसके माँ बाप नदी मे हव गये, या भीड़ मे कुचल गये । बहुत खोज की, पर उनका पता न लगा। विवश होकर उसे साथ लेते गये । ४५ वर्ष तक तो उसे अनाथालय मे रखा, लेकिन जब कार्यकर्तायों की पृट के कारण अनाथालय वन्द हो गया, तो अपने ही घर में उसका पालन पोषण करने लगा। जन्म से न हो,पर सरकारों से वह हमारी लडकी है। उसके कुलीन होने मे भी सन्देह नहा । उसका शील, स्वभाव और चातुर्य देखकर अच्छे-अच्छे घरों की स्त्रियाँ चकित रह जाती हैं । मै इधर एक साल से उसके लिए योग्य वर की तलाश में था। ऐसा आदमी चाहता था, जो स्थिति को जानकर उसे सहर्ष स्वीकार करे और पाकर अपने को धन्य समझे । पनों में आपके लेख देखकर और आपके सेवाकार्य को प्रशसा सुनकर मेरो धारणा हो गयी कि आप ही उसके लिए सबसे योग्य है । यह निश्चय करके आपके यहाँ पाया। मैंने आपसे सारा वृत्तान्त कह दिया । अब आपको अख्तियार है, उसे अपनायें या त्यागें । हाँ, इतना कह सकता हूँ कि ऐसा रन श्राप फिर न पायेंगे | में यह जानता हूँ कि आपके पिताजी को यह बात असह्य होगी, पर यह भी जानता हूँ कि वोरात्माएँ सत्कार्य में विरोध की परवा नही करतो और अन्त मे उस पर विजय हो पाती हैं।

चक्रधर गहरे विचार में पड़ गये । एक तरफ अहल्या का अनुपम सौन्दर्य और उज्ज्वल चरित्र था, दूसरी ओर माता पिता का विरोध और लोक-निन्दा का भय, मन मे तर्क सग्राम होने लगा यशोदानन्दन ने उन्हें असमजस में पड़े देखकर कहा-श्राप चिन्तित देख पडते हैं और चिन्ता की बात भी है, लेकिन जब आप जैसे सुश-क्षित और उदार पुरुष विरोध और भय के कारण कर्तव्य और न्याय से मुंह मोड़ें,तो फिर हमारा उद्धार हो चुका । मै अापसे सच कहता हूँ, यदि मेरे दो पुत्रों में से एक भी क्वॉरा होता और अहल्या उसे स्वीकार करती, तो मैं बढ़े हर्प स उसका विवाह उससे कर देता । अापके सामाजिक विचारो की स्वतन्त्रता का परिचय पाकर ही मने अापके ऊपर इस बालिका के उद्धार का भार रखा है और यदि आपने