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कायाकल्प]
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शहरवालियों को ही आता है, हम गँवारिनें यह त्रियाचरित्र क्या जानें। यहाँ तो एक ही की होकर रहना जानती हैं।

मनोरमा खड़ी सन्न रह गयी। ऐसा मालूम हुआ कि ज्वाला पैरों से उठी और सिर से निकल गयी। ऐसी भीषण मर्म-वेदना हुई, मानो किसी ने सइस शूलोंवाला भाला उसके कलेजे में चुभो दिया हो। संज्ञाशून्य सी हो गयी। आँखें खुली थीं, पर कुछ दिखायी न देता था; कानों में कोई आवाज न आती थी, इसका ज्ञान ही न रहा कि कहाँ आयी हूँ, क्या कर रही हूँ; रात है या दिन? वह दस-बारह मिनट तक इसी भाँति स्तम्भित खड़ी रही। राजा साहब मोटर के पास खड़े उसकी राह देख रहे थे। जब उसे देर हुई तो बुला भेजा। लौडी ने आकर मनोरमा से सन्देशा कहा; पर मनोरमा ने सुना ही नहीं। लौडो ने एक मिनट के बाद फिर कहा-फिर भी मनोरमा ने कोई उत्तर न दिया। तब लौंडी चली गयी। उसे तीसरी बार कुछ कहने का साहस न हुआ। राजा साहब ने दो मिनट और इन्तजार किया। तब स्वयं अन्दर आये, तो देखा कि मनोरमा चुपचाप मूर्ति को भाँति खड़ी है। दूर ही से पुकारा-नोरा, क्या कर रही हो? चलो, देर हो रही है. सात बजे लेडी काक ने आने का वादा किया है, और छः यहीं बज गये। मनोरमा ने इसका भी कुछ जवाव न दिया। तब राजा साहब ने मनोरमा के पास आकर उसका हाथ पकड़ लिया और कुछ कहना ही चाहते थे कि उसका चेहरा देखकर चौक पड़े। वह सर्प-दंशित मनुष्य की भाँति निर्निमेप नेत्रों से दीवार की ओर टक-टकी लगाये ताक रही थी, मानों आँखो की राह प्राण निकल रहे हो।

राजा साहब ने घबराकर पूछा-नोरा, कैसी तबीयत है?

अब मनारमा को होश आया। उसने राजा साहब के कन्धे पर सिर रख दिया और इस तरह फूट-फूटकर रोने लगी, मानो पानी का बाँध टूट गया हो। यह पहला अवसर था कि राजा साहब ने मनोरमा को रोते देखा। व्यग्र होकर बोले-यात क्या है मनोरमा, किसी ने कुछ कहा है? इस घर में किसकी ऐसी मजाल है कि तुम्हारी ओर टेढ़ी निगाह से भी देख सके? उसका खून पी जाऊँ। बतायो, किसने क्या कहा है? तुमने कुछ कहा है, रोहिणी? साफ-साफ बता दो।

रोहिणी पहले तो मनोरमा की दशा देखकर सहम उठी थी; पर राजा साहब के खून पी जाने की धमकी ने उसे उत्तेजित कर दिया। जी मे तो आया, कह दूँ, हाँ, मैने ही कहा है, और जो बात यथार्थ थी, वही कही है, जो कुछ करना हो, कर लो, खून पी के यों न खड़े रहोगे। लेकिन राजा साहब का विकराल रौद्र रूप देखकर बोली-उन्ही से क्यों नहीं पूछते? मेरी बात का विश्वास ही क्या?

राजा-नहीं, मैं तुमसे पूछता हूँ!

रोहिणी-उनसे पूछते क्या डर लगता है?

मनोरमा ने सिसकते हुए कहा-अब मैं यहीं रहूँगी; आप जाइए। मेरी चीजें यहीं भिजवा दीजिएगा।