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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/२०३

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कायाकल्प]
 

राजा साहब ने अवीर होकर पूछा-आखिर बात क्या है, कुछ मालुम भी तो हो ? मनोरमा-बात कुछ भी नहीं है । मै अब यहीं रहूँगी । आप जायँ ।

राजा-मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जा सकता, अकेले में एक दिन भी जिन्दा नहीं रह सकता।

मनोरमा-मैने तो निश्चय कर लिया है कि इस घर से बाहर न जाऊँगी।

राजा साहब समझ गये कि रोहिणी ने अवश्य कोई व्यग्य-शर चलाया है । उसकी अोर लाल ऑखें करके बोले- तुम्हारे कारण यहाँ से जान लेकर भागा, फिर भी तुम पीछे पड़ी हुई हो । वहाँ भी शान्त नहीं रहने देतीं । मेरी खुशी है, जिससे जी चाहता है, वोलता हूँ; जिससे जी नहीं चाहता, नहीं बोलता । तुम्हें इसको जलन क्यों होती है ?

रोहिणी-जलन होगी मेरी वला को। तुम यहाँ ही थे, तो कौन सी फूलों की सेन पर सुला दिया था। यहाँ तो 'जैसे कन्ता घर रहे, वैसे रहे विदेश ।' भाग्य में रोना बदा था, रोती हूँ।

राजा-अभी तो नहीं रोयी, मगर शौक है तो रोयोगी ।

रोहिणी-तो इस भरोसे भी न रहिएगा। यहाँ ऐसी रोनेवाली नही हूँ कि सेत-मंत आँखे फोडूं। पहले दूसरे को रुलाकर तब रोऊँगी ।

राजा साहब ने दॉत पीसकर कहा-शर्म और हया छ नहीं गयी। कुहिनों को भी मात कर दिया।

रोहिणी-शर्म और हयावाली तो एक वह है, जिन्हें छाती से लगाये खड़े हो, हम गँवारिने भला शर्म और हया क्या जाने ?

राजा साहब ने जमीन पर पैर पटककर कहा-उसकी चर्चा न करो। इतना बत- लाये देता हूँ। तुम एक लाख जन्म लो, तब भी उसको नहीं पा सकती। भूलकर भी उसकी चर्चा मत करो।

रोहिणी-तुम तो ऐसी डाँट बता रहे हो, मानों में कोई लौंडी हूँ। क्यों न उसकी चर्चा करूँ ? वह सीता और सावित्री होगी, तो तुम्हारे लिए होगी, यहाँ क्यों परदा डालने लगीं । जो वात देखू गो-सुनू गी, वह कहूँगी भी, किसी को अच्छा लगे या बुरा।

राजा-अच्छा ! तुम अपने को रानी समझे बैठी हो । रानी बनने के लिए जिन गुणों की जरूरत है, वे तुम्हें छ भी नहीं गये। तुम विशालसिंह ठाकुर से व्याहो गयी थीं और अब भी वही हो ।

रोहिणी-यहाँ रानी बनने की साध ही नहीं। मैं तो ऐसी रानियों का मुंह देखना भी पाप समझती हूँ, जो दूसरों से हाथ मिलाती और श्रॉखें मटकाती फिरें ।

राना साहब का क्रोध बढता जाता था, पर मनोरमा के सामने वह अपना पैशा-चिंक रूप दिखाते हुए शर्माते थे। पर कोई लगती बात कहना चाहते थे, जो रोहिणी को जबान वन्द कर दे, वह अवाक् रह जाय । मनोरमा को कटु बचन सुनाने के दण्ड- रूप रोहिणी को कितनी ही कड़ी बात क्यों न कही जाय, वह क्षम्य थी। बोले-तुम्हें