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[कायाकल्प
 

बढकर पूछा-क्यों राधामोहन, यह क्या मामला हो गयो ? अभी जिस दिन म गया हूँ, उस दिन तक तो दगे का कोई लक्षण न था।

राधा-जिस दिन श्राप गये, उसी दिन पंजाब से मौलवी दीनमुहम्मद साहब का श्रागमन हुअा। खुले मैदान मे मुसलमानों का एक बड़ा जलसा हुया । उसमें मौलाना साहब ने न जाने क्या लहर उगला कि तभी से मुसलमानो को कुरबानी की धुन सवार है। इधर हिन्दुत्रों को भी यह जिद है कि चाहे खून की नदी बह जाय, पर कुरबानी न होने पायेगी। दोनों तरफ से तैयारियाँ हो रही है, हम लोग तो समझाकर हार गये।

यशोदानन्दन ने पूछा-ख्वाना महमूद कुछ न बोले ।

राधा-वही तो उस जलसे के प्रधान थे।

यशोदानन्दन आँखें फाड़कर बोले-ख्वाजा महमूद !

राधा~जी हॉ, ख्वाना महमूद | आप उन्हें फरिश्ता समझे, असल में वे रेंगे सियार हैं। हम लोग हमेशा से कहते पाते हैं कि इनसे होशियार र हए, लेकिन आपको न जाने क्यों उन पर इतना विश्वास था ।

यशोदानन्दन ने श्रात्म ग्लानि से पीड़ित होकर कहा-जिस आदमी को श्राज २५ बरसों से देखता अाता हूँ, जिसके साथ कालेज में पढा, जो इसी समिति का किसी जमाने में मेम्बर था, उसपर क्योंकर विश्वास न करता। दुनिया कुछ कहे, पर मुझे ख्वाजा महमूद पर कभी शक न होगा।

राधा-आपको अख्तियार है कि उन्हें देवता समझे, मगर अभी अभी आप देखेंगे कि वह कितनी मुस्तैदी से कुरबानी की तैयारियों कर रहे हैं। उन्होने देहातों से लठैत बुलाये हैं, उन्हीं ने गौएँ मोल ली हैं और उन्हीं के द्वार पर कुरबानी होने जा रही है।

यशादा०-- ख्वाना महमूद के द्वार पर कुरबानी होगी। उनके द्वार पर इसके पहले या तो मेरी कुरबानी हो जायगी, या ख्वाजा महमूद की। तॉगेवाले को बुलाओ।

राधा-बहुत अच्छा हो यदि आप इस समय यही ठहर जायें ।

यशादा०-वाह-वाह ! शहर में आग लगी हुई है और तुम कहते हो, मैं यहीं रह जाऊँ । जो औरो पर बीतेगी वही मुझपर भी बीतेगी, इससे क्या भागना । तुम लोगों ने बड़ी भूल की कि मुझे पहले से सूचना न दी ।

राधा-कल दोपहर तक तो हमें खुद हो न मालूम था कि क्या गुल खिल रहा है। ख्वाजा साहब के पास गये तो उन्होंने विश्वास दिलाया कि कुरबानी न होने पायेगी, आप लोग इत्मीनान रखें । हमसे तो यह कहा, उधर शाम ही को लठैत श्रा पहुँचे और मुसलमानों का डेपुटेशन सिटी मैजिस्ट्रेट के पास कुरबानी की सूचना देने पहुँच गया ।

यशादा.-महमूद भी डेपुटेशन में थे ?