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कायाकल्प]
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है? गाँव गाँव दौड़ना अब मुझसे नहीं हो सकता। अब तो ईश्वर की दया से रियासत अपनी है। तुम्हीं इतनी लापरवाही करोगे, तो कैसे काम चलेगा? हाथी, घोड़े, मोटरें सब कुछ मौजूद हैं। कभी कभी इधर उधर चक्कर लगा आया करो। इसी तरह धाक बैठेगी, घर में बैठे-बैठे तुम्हें कौन जानता है?

चक्रधर ने उदासीन भाव से कहा—मैं इस झंझट में नहीं पड़ना चाहता। मैं तो यहाँ से जाने को तैयार बैठा हुआ हूँ।

मुंशीजी चक्रधर का मुँह ताकने लगे। बात इतनी अश्रुत-पूर्व थी कि उनकी समझ ही में न आयी। पूछा—क्यों अब भी वही सनक सवार है?

चक्रधर—आप उसे सनक—पागलपन—जो चाहें समझें; पर मुझे तो उसमें जितना आनन्द आता है, उतना इस हरबोंग में नहीं आता। आपको तो मेरी यही सलाह है, आराम से घर में बैठकर भगवान् का भजन कीजिए। मुझसे जो कुछ बन पड़ेगा, आपकी मदद करता रहूँगा।

मुंशी—बेटा, मुझे मालूम होता है, तुम अपने होश में नहीं हो। बिस्वे-बिस्वे के लिए तो खून की नदियाँ बह जाती हैं और तुम इतनी बड़ी रियासत पाकर ऐसी बातें करते हो। उन्हें क्या हो गया है? बेटा, इन बातों में कुछ नही रखा है। अब तुम समझदार हुए, उन पुरानी बातों को दिल से निकाल डालो। भगवान् ने तुम्हारे ऊपर कृपा-दृष्टि फेरी है। उसको धन्यवाद दो और राज्य का इन्तजाम अपने हाथ में लो। तुम्हें करना भी क्या है, करनेवाले तो कर्मचारी हैं। बस, जरा डाँट फटकार करते रहो; नहीं तो कर्मचारी लोग शेर हो जायँगे, तो फिर काबू में न आयँगे।

चक्रधर को अब मालूम हुआ कि मैं शान्त बेठने भी न पाऊँगा, आज लाला जी ने यह उपदेश दिया। सम्भव है, कल अहल्या को भी मेरा एकान्तवास बुरा मालूम हो। वह भी मुझे उपदेश करे, राजा साहब भी कोई काम गले मढ़ दें। अब जल्द ही यहाँ मे बोरिया बँधना सँभालना चाहिए; मगर इसी सोच विचार में एक महीना और गुजर गया और वह कुछ निश्चय न कर सके। उस हलचल की कल्पना करके उनकी हिम्मत छूट जाती थी, जो उनका प्रस्ताव सुनकर अन्दर से बाहर तक मच जायगा। अहल्या रोयेगी, मनोरमा कुढ़ेगी; पर मुँह से कुछ न कहेगी, लालाजी जामे से बाहर हो जायँगे और राजा साहब एक ठण्ढी साँस लेकर सिर झुका लेंगे।

एक दिन चक्रधर मोटर पर हवा खाने निकले। गरमी के दिन थे। जी बेचैन था। हवा लगी, तो देहात की तरफ जाने का जी चाहा। बढ़ते ही गये, यहाँ तक कि अँधेरा हो गया। गोफर को साथ न लिया था। ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते थे, सड़क खराब आती जाती थी। सहसा उन्हें रास्ते में एक बड़ा साँड़ दिखायी दिया। उन्होंने बहुत शोर मचाया; पर साड़ न हटा। जब समीप आने पर भी साँड़ राह में खड़ा ही रहा, तो उन्होंने कतराकर निकल जाना चाहा; पर साँड़ सिर झुकाये फों फों करता फिर सामने आ खड़ा हुआ। चक्रधर छड़ी हाथ में लेकर उतरे कि उसे भगा दें, पर वह भागने के