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[कायाकल्प
 


बदले उनके पोछे दौड़ा। कुशल यह हुई कि सड़क के किनारे एक पेड़ मिल गया, नहीं तो उनकी जान जाने में कोई सन्देह हो न था। जी छोड़कर भागे ओर छड़ी फेंक, पेड़ की एक शाख पकड़कर लटक गये। साँड़ एक मिनट तक तो पेड़ से टक्कर लेता रहा, पर जब चक्रधर न मिले, तो वह मोटर के पास लौट गया ओर उसे सीगों से पीछे को ठेलता हुआ दौड़ा। कुछ दूर के बाद मोटर सड़क से हटकर एक वृक्ष से टकरा गयी। अब सॉड़ पूछ उठा-उठाकर कितना ही जोर लगाता है, पीछे हट हटकर उसमें टक्कर मारता है, पर वह जगह से नहीं हिलती। तब उसने बगल में जाकर इतनी जोर से टक्कर लगायी कि मोटर उलट गयी। फिर भी साँड़ ने उसका पिंड न छोड़ा। कभी उसके पहियों से टक्कर लेता, कभी पीछे की तरफ नोर लगाता। मोटर के पहिये फट गये, कई पुरजे टूट गये, पर सॉड़ बराबर उस पर आघात किये जाता था। चक्रधर शाख पर बैठे तमाशा देख रहे थे। मोटर की तो फिक्र न थी, फिक यह थी कि घर कैसे लौटेंगे। चारों ओर सन्नाटा था। कोई आदमी न जाता-आता था। अभी मालूम नहीं, साँड़ कितनी देर तक मोटर से लड़ेगा और कितनी देर तक उन्हें वृक्ष पर टँगे रहना पड़ेगा। अगर उनके पास इस वक्त वन्दूक होती, तो सॉड़ का मार ही डालते। दिल में साँड़ छोड़ने की प्रथा पर झुँझला रहे थे। अगर मालूम हो जाय कि किसका साँड़ है, तो सारी जायदाद विकवा लूँँ। पाजी ने साँढ़ छोड़ रखा है।

सॉड़ ने जब देखा कि शत्रु की धजियाँ उड़ गयी और अब वह शायद फिर न उठे, तो डँकारता हुआ एक तरफ को चला गया। तब चक्रधर नीचे उतरे और मोटर के समीप जाकर देथा, तो वह उलटी पड़ी हुई थी। जब तक सीधी न हो जाय, यह पता कैसे चले कि क्या-क्या चीजें टूट गयी है, और अब वह चलने योग्य है या नहीं। अकेले मोटर को सीधी करना एक आदमी का काम न था। सोचने लगे, आदमियों को कहाँ से लाऊँ। इधर से तो शायद अब रातभर कोई न निकलेगा। पूर्व की ओर थोड़ी ही दूर पर एक गाँव था। चक्रवर उसी तरफ चले। रास्ते में इधर उधर ताकते जाते थे कि कहीं साँड़ न आता हो, नहीं तो यहाँ सपाट मैदान में कहीं वृक्ष भी नहीं है, मगर साँड न मिला और वह एक गाँव में पहुँँचे। वह बहुत छोटा-सा ‘पुरवा’ था। किसान लोग अभी थोड़ी ही देर पहले ऊख की सिंचाई करके आये थे। कोई बैलों को सानी-पानी दे रहा था, कोई खाने जा रहा था, कोई गाय दुह रहा था। सहसा चक्रधर ने जाकर पूछा--यह कौन गाँव है?

एक आदमी ने जवाब दिया―भैंसौर।

चक्रधर―किसका गाँव है?

किसान―महाराज का। कहाँ से आते हो?

चक्रधर―हम महाराज ही के यहाँ से आते हैं। वह बदमाश साँड़ किसका है, जो इस वक्त सड़क पर घूमा करता है?

किसान―यह तो नहीं जानते साहब; पर उसके मारे नाकोंदम है। उधर से किसी