सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/२३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
कायाकल्प]
२४७
 

को निकलने ही नहीं देता । जिस गाँव मे चला जाता है, दो-एक बैलों को मार टालता है । बहुत तग कर रहा है !

चक्रधर ने सॉड के अाक्रमण का जिक्र करके कहा-तुम लोग मेरे साथ चलकर मोटर को उठा दो। इस पर दूसरा किसान अपने द्वार पर से बोला-सरकार, भला रात को मोटर उठाकर क्या कीजिएगा ? वह चलने लायक तो होगी नहीं।

चक्रधर-तो तुम लोगों को उसे ठेलकर ले चलना पड़ेगा।

पहला किसान-सरकार, गत भर लही ठहरे, सवेरे चलेंगे। न चलने लायक होगी, तो गाड़ी पर लाटकर पहुंचा देंगे ।

चक्रधर ने मनाकर कहा-कैसी बाते करते हो जी ! मै रात भर यहाँ पड़ा रहूँगा! तुम लोगों को इसी वक्त चलना होगा।

चक्रधर को उन पादनियो न कोई न पहचानता था। समझे, राजायों यहाँ सभी तरह के लोग आते जाते हैं, होगे कोई। फिर वे सभी जाति के ठाकुर थे, पार ठाकुर से सहायता के नाम से जो काम चाहे ले लो वेगार के नाम से उनकी त्योरियाँ बदल जाती हैं । किसान ने कहा-साहब, इस बखत तो हमारा जाना न होगा। अगर वेगार चाहते हो, तो वह उत्तर की ओर दूसरा गाँव है, वहाँ चले जाइए। बहुत चमार मिल जायेंगे।

चक्रधर ने गुस्से में प्राकर कहा-में कहता हूँ, तुमको चलना पड़ेगा। किसान ने दृढ़ता ने कहा-तो साहब, इस ताव पर तो हम न जायेंगे | पानी चमार नहीं है, हम भी ठाकूर है।

यह कहकर वह घर मे जाने लगा।

चक्रधर को ऐसा कोच आया कि उसका हाथ पकड़कर घसीट लूँ और ठोकर मारते हुए ले चलू; मगर उन्होंने जब्त करके कहा-मे सधि से करता है, तो तुम लोग उड़न-घाइयाँ बताते हो । अभी कोई चपरासी श्राकर दो मुड़कियों जमा देता, तो सारा गाँव भेन की भाँति उसके पीछे चला जाता।

किसान यही खड़ा हो गया और बोला-मिगही क्यों चुरा जमायेगा, कोई चोर है ? हमारी खुशी, नहीं जाते। यारको जो करना हो कर लीजिरगा।

चक्रधर से जन्त न हो सका । छली हाथ में या हो । वह बान की तरह किमान पर टूट पड़े और एक धक्का देकर कहा-चलता है या उमाऊ दो चार काय ? नुम नात के प्रादमी बात में क्यों मानने लगे!

चम्पर क्रती आदमी थे । सिान धनमा यार गिर पन। यो वर मी करारा प्रादमी था। उनम पलता, तो चकवर जालानी ने उसे न गिग उन पर व गेव में या गया । सोचा, कोई हामि, नहा तो उसकी हिमन नपरतीक हाय उठाद। उँभनकर उने लगा। चादर ने समझा, शारद गद उटकर नुकरर पार गा।