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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/२३४

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कायाकल्प]
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क्या बुराई थी? अगर मैं उसकी जगह होता, तो कह देता कि तुम्हारा गुलाम नहीं हूँ जैसे चाहो अपनी मोटर ले जाओ, मुझसे मतलब नहीं। मगर उसने तो तुम्हारे साथ भलमनसी की और तुम उसे मारने लगे। अब बताओ, इसके हाथ की क्या दवा की जाय? सच है, पद पाकर सबको मद हो जाता है।

चक्रधर ने ग्लानि-वेदना से व्यथित स्वर में कहा—धन्नासिंह, मैं बहुत लज्जित हूँ, मुझे क्षमा करो। जो दण्ड चाहो, दो; सिर झुकाये हुए हूँ, जरा भी सिर न हटाऊँगा, एक शब्द भी मुँह से न निकालूँगा।

यह कहते-कहते उनका गला फँस गया। धन्नासिंह भी गद्गद् हो गया। बोला—अरे भगतजी, ऐसी बातें न कहो। तुम मेरे गुरु हो, तुम्हें मैं अपना देवता समझता हूँ। क्रोध में आदमी के मुँह से दो-चार कड़ी बातें निकल ही जाती हैं, उनका खयाल न करो। भैया, भाई का नाता बड़ा गहरा होता है। भाई चाहे अपना शत्रु भी हो; लेकिन कौन आदमी है, जो भाई को मारखाते देखकर क्रोध को रोक सके? मुझे अपना वैसा ही दास समझो, जैसे जेहल में समझते थे। तुम्हारी मोटर कहाँ है? चलो, मैं उसे उठाये देता हूँ; या हुक्म हो तो गाड़ी जोत लूँ?

चक्रधर ने रोकर कहा—जब तक इसका हाथ अच्छा न हो जायगा, तब तक मैं कहीं न जाऊँगा, धन्नासिंह! हाँ, कोई आदमी ऐसा मिले, जो यहाँ से जगदीशपुर जा सके, तो उसे मेरी एक चिट्ठी दे दो।

धन्नासिंह—जगदीशपुर में तुम्हारा कौन है, भैया? क्या रियासत में नोकर हो गये हो?

चक्रधर—नौकर नहीं हूँ। मैं मुंशी वज्रधर का लड़का हूँ।

धन्नासिद ने विस्मित होकर कहा—सरकार ही बाबू चक्रधरसिंह हैं। धन्य भाग थे कि सरकार के आज दर्शन हुए।

यह कहते हुए वह दौड़कर घर में गया और एक चारपाई लाकर द्वार पर डाल दी। फिर लपकर गाँव में खबर दे आया। एक क्षण में गाँव के सब आदमी आकर चक्रधर को नजरें देने लगे। चारों ओर हलचल सी मच गयी। सब के सब उनके यश गाने लगे। जब से सरकार आये हैं, हमारे दिन फिर गये हैं, आपका शील स्वभाव जैसा सुनते थे, वैसा ही पाया। आप साक्षात् भगवान् हैं।

धन्नासिंह ने कहा—मैंने तो पहचाना ही नहीं। क्रोध में न जाने क्या-क्या बक गया।

दूसरा ठाकुर बोला—सरकार अपने को खोल देते, तो हम मोटर के कन्धों पर लादकर ले चलते। हुजूर के लिए जान हाजिर है। मन्नासिंह मरदे आदमी, हाथ झटक कर उठ खड़े हो, तुम्हारे तो भाग्य खुल गये।

मन्नासिंह ने कराहकरर मुस्कराते हुए कहा—सरकार देखने में तो दुबले पतले हैं। पर आपके हाथ पाँव लोहे के हैं। मैने सरकार से भिड़ना चाहा; पर आपने एक ही धड़गे में मुझे दे पटका।