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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/२३५

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[कायाकल्प
 


धन्नासिंह—अरे पागल, भाग्यवानों के हाथ-पाँव में ताकत नहीं होती, अकबाल में ताकत होती है। उससे देवता तक काँपते हैं।

चक्रधर को इन ठकुरसुहाती बातों में जरा भी आनन्द न आता था। उन्हें उनपर दया आ रही थी। वही प्राणी, जिसे उन्होंने अपने कोप का लक्ष्य बनाया था, उनके शौर्य और शक्ति की प्रशंसा कर रहा था। अपमान को निगल जाना चरित्र पतन की अन्तिम सीमा है। और यही खुशामद सुनकर हम लट्टू हो जाते है। जिस वस्तु से घृणा होनी चाहिए, उस पर हम फूले नहीं समाते। चक्रधर को अब आश्चर्य हो रहा था कि मुझे इतना क्रोध आया कैसे? आज से साल भर पहले भी मुझे कभी किसी पर इतना क्रोध नहीं आया था। साल भर पहले कदाचित् वह मन्नासिंह के पास आकर सहायता के लिए मिन्नत समाजत करते, अगर रात भर रहना ही पड़ता, तो रह जाते, इसमें उनकी हानि ही क्या थी। शायद उन्हें देहातियों के साथ एक रात कटने का अवसर पाकर खुशी होती। आज उन्हें अनुभव हुया कि रियासत की बू कितनी गुप्त और अलक्षित रूप से उनमें समाती जाती है। कितने गुप्त और अलक्षित रूप से उनकी मनुष्यता, चरित्र और सिद्धान्त का ह्रास हो रहा है।

सहसा सड़क की ओर प्रकाश दिखायी दिया। जरा देर में दो मोटरें सड़क पर धीरे-धीरे जाती हुई दिखायी दीं, जैसे किसी को खोज रही हों। एकाएक दोनों उसी स्थान पर पहुँचकर रुक गयीं, जहाँ चक्रधर की मोटर टूटी पड़ी थी। फिर कई आदमी मोटर से उतरते दिखायी दिये। चक्रधर समझ गये की मेरो तलाश हो रही है। तुरन्त उठ खड़े हुए। उनके साथ गाँव के लोग भी चले। समीप आकर देखा, तो सड़क की तरफ से भी लोग इसी गाँव की तरफ चले आ रहे थे। उनके पास बिजली की बत्तियाँ थीं। समीप आने पर मालूम हुआ कि रानी मनोरमा पाँच सशस्त्र सिपाहियों के साथ चली आ रही हैं। चक्रधर उसे देखते ही लपककर आगे बढ़ गये। रानी उन्हें देखते ही ठिठक गयी और घबरायी हुई आवाज में बोली—बाबूजी, आपको चोट तो नहीं आयी? मोटर टूटी देखी, तो जैसे मेरे प्राण ही सन्न हो गये। अब मैं आपको अकेले कभी न घूमने दिया करूँगी।


३३

देवप्रिया को उस गुफा में रहते कई महीने गुजर गये। वह तन-मन से पति-सेवा में रत रहती। प्रातःकाल नीचे जाकर नदी से पानी लाती, पहाड़ी वृक्षों से लकड़ियाँ तोड़ती और जंगली फलों को उबालती। बीच बीच में महेन्द्रकुमार कई-कई दिनों के लिए कहीं चले जाते थे। देवप्रिया अकेले गुफा में बैठी उनकी राह देखा करती, पर महेन्द्र को वन-वन में घूमने से इतना अवकाश ही न मिलता कि दो चार पल के लिए उसके पास भी बैठ जायें। रात को वह योगाभ्यास किया करते थे। न-जाने कब कहाँ चले जाते, न-जाने कब कैसे चले आते, इसका देवप्रिया को कुछ भी पता न चलता। उनके जीवन का रहस्य उसको समझ में न आता था। उस गुफा में भी उन्होंने न-